खबरें अभी तक। माना जाता है कि जब से भारत की सभ्यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है। योग की उत्पत्ति धर्म, आस्था के जन्म लेने से पहले हुई थी। योग विद्या में….शिव को योगी या आदि योगी के रूप में जाना जाता है। कई हजार वर्ष पहले, हिमालय में कांति सरोवर झील के तटों पर आदि योगी ने अपने प्रबुद्ध ज्ञान को अपने प्रसिद्ध सप्तऋषि को प्रदान किया था।
सप्तऋषियों ने योग के इस ताकतवर विज्ञान को एशिया, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका एवं दक्षिण अमरीका सहित विश्व के भिन्न- भिन्न भागों में पहुंचाया। योग लोक परंपराओं, सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक एवं उपनिषद की विरासत, बौद्ध एवं जैन परंपराओं, दर्शनों, महाभारत एवं रामायण नामक महाकाव्यों, शैवों, वैष्णवों की आस्तिक परंपराओं एवं तांत्रिक परंपराओं में है।
योग का सीधा सम्बन्ध आध्यात्मिक गतिविधियों और धार्मिक दर्शन से रहा है। स्वामी विवेकानंद ने भी हमेशा से ही योग को बढ़ावा दिया। उन्होंने योग के नए शब्द के चलन को बढ़ावा दिया वो था-कर्मयोग। कर्मयोग युवाओं को खूब भाया। स्वामी दयानंद सरस्वती योग के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने आर्य समाज की मुख्य गतिविधियों में योग को अपनाने पर बल दिया। योग के प्रभाव को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी स्वीकारते थे।
उन्होंने व्यायाम-सदाचार और भोजन के बारे में नियंत्रण सम्बन्धी उपाय योग के माध्यम से ही सीखे थे। इसका वर्णन उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग ‘में कईं स्थानों पर किया है। योग के महत्त्व को समझते हुए भारत और भारत के बाहर अनेक व्यक्ति और संस्थाएं अपने अपने स्तर पर विभिन्न कार्यक्रमों और कार्यशालाओं का आयोजन करते रहते हैं। उत्तराखंड प्रान्त के ऋषिकेश में पिछले कई वर्षों से ऐसा ही एक महत्त्वपूर्ण आयोजन होता आ रहा है। यहां परमार्थ निकेतन के प्रमुख स्वामी चिदानंद की देखरेख में ‘इंटरनेशनल योगा फेस्टिवल’ का प्रतिवर्ष आयोजन किया जाता है।