चल मेरी जिंदे नवीं दुनियां बसाणी, डुबी गए घरबार, आई गया पाणी..

ख़बरें अभी तक। चल मेरी जिंदे नवीं दुनियां बसाणी, डुबी गए घरबार, आई गया पाणी..। गोविंदसागर झील में जलमग्न बिलासपुर शहर पर आधारित ये पंक्तियां विस्थापन के दर्द को बयां करती हैं। जल समाधि के उस लोमहर्षक क्षण को याद करते हुए बिलासपुर के बुजुर्ग इन्हीं पंक्तियों को गाते हैं। कविता को सुनने के बाद शायद ही कोई ऐसा होगा, जिसकी आंखें नम न हों।58 साल का हो गया नया बिलासपुर शहर

नौ अगस्त, 1961 को पहली बार भाखड़ा बांध का जलस्तर बढ़ा, तो बिलासपुर का पुराना शहर डूबता चला गया।  सदियों पुराने ऐतिहासिक बिलासपुर शहर के नौ अगस्त, 1961 को जल समाधि लेने के बाद झील किनारे नए शहर का निर्माण किया गया था। जलमग्न होने से बिलासपुर  के 354 गांव, 12 हजार परिवार और 52 हजार लोग उजड़े थे। इस शहर का डूबना एक संस्कृति का डूबना था।गोबिंदसागर झील में कहलूर रियासत का रंग महल व नया महल ही नहीं डूबे, बल्कि उनसे भी पुराने महल शिखर शैली के 99 मंदिर, स्कूल, कॉलेज, और कचहरी परिसर भी डूब गये थे। यह शहर कहलूर रियासत की राजधानी था। कहलूर रियासत के एक महा प्रतापी राजा दलीप चंद ने इस शहर को अपनी राजधानी के रूप में बसाया था। उसने धौलरा में अपने महल बनवाए थे और नीचे की तरफ यह शहर बसाया था।

भाखड़ा बांध की खातिर लोगों ने सब कुछ कर दिया कुर्बान

जहां विकास के नाम पर सदियों पुराने बिलासपुर शहर को पहले तो उजाड़ा गया और उसकी जगह नया बिलासपुर शहर बसा कर नई सुविधायें देने के आश्वासन दिये गये। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जिस भाखड़ा बांध को देश का आधुनिक मंदिर बताया था, उस आधुनिक मंदिर के निर्माण के लिए बिलासपुर नगर की कुर्बानी दी गई थी। नेहरू ने ऐलान किया था कि बिलासपुर के विस्थापितों को इतनी सुविधाएं दी जाएंगी कि वे अपने विस्थापन के दर्द को भूल जाएंगे, लेकिन सभी सरकारों ने केवल राजनीतिक रोटियां ही सेंकी हैं।बुजुर्गों के जहन में आज भी ताजा है विस्थापन का दर्द

लंबा समय बीतने के बाद आज भी भाखड़ा विस्थापित अपने झील में समाए उजड़े हुए आशियानों को याद कर सिहर उठते हैं। भाखड़ा बांध के लिये देश को रोशन करने की खातिर अपना सब कुछ बलिदान करने वाले भाखड़ा विस्थापित बुजुर्ग आज भी जल समाधि लेते व पुराने ऐतिहासिक शहर के उन पलों को नहीं भुला पाए हैं।