ख़बरे अभी तक। बल्लेबाजी ऐसी की गेंदबाजो को दिन में सपने दिखा दे, फील्डर ऐसा की उसकी फुर्ती देख ‘चीता’ भी शर्मा जाए, गेंदबाजी ऐसी की बड़े से बड़े बल्लेबाज को अपने उंगलियो पर नचाने का दम रखता हो, जीत की दहाड़ ऐसी की ‘शेर’ भी आहट से भर जाए. जी, यह कहानी है टीम इंड़िया के ‘शेर’ युवराज सिंह की. जिसने ‘कभी हार नहीं मानी’ हर मुश्किल समय में आगे बढ़ता रहा और पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी की लाईनों को सिद्ध करता रहा ‘हार नहीं मानूंगा,रार नहीं ठानूंगा’.चाहे वह क्रिकेट के मैदान पर हो या ‘कैंसर’ से जंग जीतने का युद्ध. वह हर परिस्थितियों में अपने आप को योद्धा साबित करता रहा.
पर आखिरकार है तो वह भी एक क्रिकेटर ही, क्रिकेट में कुछ उम्र की सीमाएं और साथ में अच्छे प्रदर्शन की बाधांए होती है. खराब फॉर्म और फिटनेस के कारण युवराज सिंह को भी इस इतिहास को ठहराने की अनुमती देनी पड़ी, कि इस खेल से बढ़कर कोई नही. इस खेल ने उसे जीतना और जीना सिखाया. वर्ल्ड कप-2019 खेलने की हसरतें लिए अपनी राह पर चलते रहे. पर अगर इंसान की हर ख्वाहिश पूरी हो जाए को वह इंसान ही क्या. उधर वर्ल्ड कप-2019 खेलने का सपना टूटा और इधर युवराज सिंह ने 10 जून को संन्यास का ऐलान किया.
लेकिन युवराज सिंह ने जो इतिहास अपने पीछे छोड़ा है वह किसी एक गाथा से कम नहीं है चाहे वह 2007 वर्ल्ड कप में स्टुअर्ट ब्रॉड के 6 गेंदो पर 6 छक्के हो या ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में 30 गेंदो में 70 की जीताऊ पारी जिसमे 5 गगनचुम्बी छक्को के साथ माइकल हसी का उड़ता हुआ वह कैच, फिर जीत के बाद वो शेर की दहाड़ कैसे भुल सकते है आप. टी-20 वर्ल्ड कप-2007 में युवराज सिंह ‘मैन ऑफ द सीरीज’ से नवाजा गया था.
कैप्टन सौरव गांगुली का ऐतिहासिक लार्ड्स मैदान की बालकनी से शर्ट लहराना, इंग्लैंड के खिलाफ नेटवेस्ट सीरीज के फाइनल में टीम इंडिया को मिली जीत आज भी क्रिकेट फैन्स के जेहन में होगी. 13 जुलाई 2002 को खेला गया यह मैच टीम इंडिया ने दो विकेट से जीता था. 145 रनों पर पांच विकेट गिर जाने के बाद युवराज सिंह ने मोहम्मद कैफ के साथ 121 रन की साझेदारी कर भारत को जीत दिलाई थी. उनकी इस साहसी पारी को आप कैसे भुल सकते है.
इंग्लैंड के खिलाफ राजकोट में युवराज की 75 गेंदों पर धमाकेदार 138 रन. कराची में पाकिस्तान के खिलाफ खेली गई 93 गेंदों शतकीय पारी. ऐसी ही न जाने कितनी पारीयों से युवराज सिंह ने टीम इंड़िया को जीत दिलाई और उनकी इन्हीं पारीयों ने उनको महान खिलाड़ी बनाया जिसे दुनिया आज सलीम कर रही है.
वर्ल्ड कप-2011 के फाइनल में धोनी को वो विजयी छक्का पर उस टूर्नामेंट की पुरी कहानी ऑल-राउंडर युवराज सिंह के द्वारा ही लिखी गई थी. ‘कैंसर’ की परवाह न कर टूर्नामेंट में खेलते रहे और जीतते रहे. 2011 वर्ल्ड कप टूर्नामेंट में युवराज सिंह ने शानदार 362 रन के साथ 15 विकेट भी लिए. जिसमें युवराज का ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ क्वॉर्टरफाइनल में विनिंग फोर और 57 रनों की महत्वपूर्ण पारी. साथ में वेस्ट इंडीज के खिलाफ ‘कैंसर’ से लड़ 113 रनों की जुझारू पारी से टीम को जीत दिलाई.
आयरलैंड के खिलाफ उनके 50 रन और 5 विकेट जिसने मैच को भारत की झोली में डाल दिया था. इन ही पारीयों ने उन्हें महान बनाया है. और वर्ल्ड कप-2011 के हीरो को ‘मैन ऑफ द सीरीज’ के खिताब नवाजा गया. लेकिन तब तक उनकी कैंसर की बिमारी ज्यादा ही बढ़ गई थी पर वह तो शेर था ‘हार तो माना ही नहीं कभी’ लंदन में ईलाज करा कर कैंसर की जंग जीता और फिर मैदान पर वापसी कर 2016 का T20 वर्ल्ड कप खेला. लेकिन तब से ही खराब फॉर्म और फिटनेस के कारण टीम से अंदर-बाहर होते रहे जिस कारण अब उन्हें संन्यास लेना पड़ा है.