यूपी: सोनभद्र के माँ ज्वालामुखी मंदिर में भक्तों की उमड़ी भीड़

ख़बरें अभी तक। सोनभद्र जनपद के दक्षिणी छोर पर स्थित शक्तिनगर में ज्वाला देवी के मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। नवरात्री प्रारंभ होते ही मंदिरों को अच्छी तरह से सजाया गया सुबह चार बजे भोर से ही मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं और घंटे घड़ियाल के ध्वनि सुनाई देने लगते है। और चारों तरफ भक्तिमय संगीत बजने लगता है। मंदिर के पुजारी परिवार द्वारा साफ-सफाई कर जहां मंदिर परिसर को आकर्षक ढंग से सजाया गया है।

वहीं दूरदराज से आने वाले दर्शनार्थियों के रूकने तथा खाने आदि की सुविधा प्रदान की जा रही है। नवरात्र में मंदिर परिसर के ¨सह द्वार के अंदर व बाहर माला-फूल सहित पूजा के सामानों की दुकानें लगी हैं। नवरात्र में यहां बाहर से आने वाले दर्शनार्थी मंदिर परिसर में अपनी मनौती के पूरी होने पर पुराने बांधे गए नारियल को खोलते हैं और नई मन्नत मांग कर पुन: नारियल बांधते हैं। यहां आने वाले दर्शनार्थी अखंड ज्योति का दर्शन करना नहीं भूलते हैं।

ज्वालामुखी मंदिर पर ट्रेन व बस से पहुंचना बहुत आसान है। वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पीडब्ल्यूडी मोड़ से चंद कदमों की दूरी पर मंदिर स्थित है। श्रद्धालुओं को मंदिर पर आने के लिए ट्रेन व बस सेवा उपलब्ध है। शक्तिनगर रेलवे स्टेशन से मंदिर लगभग डेढ़ किमी दूरी पर स्थित है। वाराणसी एवं मध्य प्रदेश की ओर से मंदिर आने के लिए बस का साधन उपलब्ध है।

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड व बिहार पांच प्रदेशों की सीमा पर स्थित मां ज्वालामुखी मंदिर रिहंद जलाशय में समाहित गहरवार राजा उदित नारायण के राज घराने की कुल देवी के रूप में उनके द्वारा स्थापित की गई थीं। राजा का किला व राजधानी का कुछ भाग जलाशय में डूब गया है। मध्य प्रदेश के सिगरौली जिले में रह रहे इस राजघराने के लोग आज भी मां ज्वालामुखी को कुल देवी के रूप में पूजते हैं।

मां ज्वाला देवी के गर्भगृह में मंदिर के पीछे स्थित नीम के पेड़ का स्थापना काल से ही नाता रहा है। जब मंदिर नहीं बना था तब बहुत वर्षों तक मां का निवास नीम के पेड़ में ही था। धर्मशास्त्र भी बताते हैं कि नीम के पेड़ में ही मां का निवास रहता है इसलिए जब दर्शनार्थी मां का दर्शन-पूजन करने जाते हैं तब नीम के पेड़ पर मत्था जरूर टेकते हैं। नीम के पेड़ की पूजा के बाद ही मां की पूजा पूर्ण मानी जाती है। नीम का पेड़ वर्ष भर फूल-फल से आच्छादित रहता है।

मंदिर आधुनिक वास्तुकला से निर्मित है। इसके पास में ही स्थित कोल परियोजनाओं में प्रतिदिन ब्लास्टिंग होने से धरती हिल जाती है। इसके बाद भी मंदिर का छत खम्भा यथावत कायम है। नीम का पेड़ भी मंदिर के गर्भगृह के साथ होने के बाद भी मंदिर की सतह में कभी दरार नहीं आयी। मंदिर में कई तहखाने हैं। एक तहखाने में ही अखण्ड ज्योति निरंतर जल रही है। मंदिर का ¨सह द्वार आधुनिक है तथा उत्तर का द्वार अति प्राचीन है। मंदिर परिसर में स्थित कई छोटे-छोटे मंदिरों में देवी-देवताओं की मूर्तियां विराजमान है।

यहां पर आए श्रद्धालुओं का मानना है कि यह मंदिर बहुत पुराना है और यहां पर जो भी लोग आते हैं उनकी मन्नते पूरी होती हैं चाहे वह संतान प्राप्ति की हो चाहे वह नौकरी की हो शादी विवाह की हो सभी लोगों की मनोकामना पूरी होती है।

मंदिर व् माँ के महत्ता के बारे में बताया जाता है कि नीम पेड़ के नीचे छोटी से मंदिर में मां की प्रतिमा थी। परिक्षेत्र में जो विकास दिखाई दे रहा है वह मां के चमत्कार का प्रभाव है। दूर-दराज से भारी संख्या में दर्शनार्थी अपनी फरियाद लेकर मां के दरबार में आते हैं। मां सभी की मनोकामना पूर्ण करती हैं। माँ की महिमा के बारे में कहा जाता है दो लोगों ने माँ की चरणों में अपनी जिह्वा (जीभ) को काट कर चढ़ा दिया और कुछ मिनट में जिह्वा पुनः वापस आ गयी।