हिमाचल: ऊना के बांस से बने उत्पाद बाजार में मचाएंगे धमाल

ख़बरें अभी तक। ऊना के बांस से बने उत्पाद जल्द ही बाजार में धूम मचाते दिखाई देंगे। वन विभाग द्वारा पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लमलेहड़ी के ग्रामीणों को बांस के उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। त्रिपुरा के कारीगर तीन महीने ग्रामीणों को प्रशिक्षण देकर उत्पाद बनाने में निपुण बनाएंगे। वहीँ इन उत्पादों को बाजार उपलब्ध करवाने के लिए सबसे पहले सरकारी कार्यालयों में इनकी खरीद की जाएगी।

बाजार में बढ़ते प्लास्टिक, लकड़ी और स्टील के उत्पादों का सामना बांस से बने फर्नीचर और सजावटी सामान से होने वाला है। वन विभाग द्वारा बेरोजगारों को स्वरोजगार के साधन उपलब्ध करवाने के लिए बांस की लकड़ी से बने उत्पाद तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके लिए बाकायदा त्रिपुरा के कारीगर ग्रामीणों को तीन महीने का प्रशिक्षण देकर बांस के उत्पाद बनाने में निपुण बना रहे है। ग्रामीण परिवेश में लोगों की

आर्थिकी को मजबूत करने के लिए वन विभाग ने ऊना के लमलैहड़ी गांव में लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के लिए चयनित किया है। पंचायत घर लमलैहड़ी में प्रशिक्षुओं को बांस के उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षण के बाद स्थानीय लोगों के लिए पिछले लंबे समय से बंद पड़े रेश्म उत्पादन युनिट में शिफ्ट किया जायेगा जिससे यूनिट का सदुपयोग होगा वहीं प्रशिक्षुओं को भी अपना धंधा चलाने के लिए स्थान उपलब्ध हो जायेगा। लमलेहड़ी में मौजूदा समय में करीब 35 लोग बांस की लकड़ी के उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है इस प्रशिक्षण शिविर में महिलाएं काफी दिलचस्पी दिखा रही है। त्रिपुरा से आये कारगर स्थानीय लोगों को बांस की लकड़ी से टेबल, कुर्सी, झंडे, पूजा की सामग्री, सर्विस ट्रे, पेन स्टैंड व घरों के इंटीरियर सहित अन्य फर्नीचर तैयार करने के गुर दे रहे है। इस प्रशिक्षण शिविर से स्थानीय लोग खासे उत्साहित है। स्थानीय लोगों की माने तो इससे जहाँ उन्हें रोजगार का साधन मिलेगा वहीँ वो अपनी आर्थिकी को भी मजबूत कर पाएंगे।

वहीं त्रिपुरा के कारीगर विमल डेबेरमा की माने तो वो पहले भी कई राज्यों में ऐसे प्रशिक्षण शिविर लगा चुके है। विमल ने बताया कि करीब 70 दिन के प्रशिक्षण के बाद प्रशिक्षु बांस की लकड़ी के उत्पाद बनाने में निपुण हो जाते है।

वहीं ग्राम पंचायत लमलेहड़ी के प्रधान राजेश कुमार की माने तो पिछले लंबे समय से उनके गांव में बना रेशम उत्पादन यूनिट बंद पड़ा था जब जिला प्रशासन के ध्यान में यह मामला लाया गया तो उन्होंने इसमें कई प्रकार के कार्यों को शुरू करने का सुझाव दिया गया लेकिन बांस की लकड़ी के उत्पादों का सुझाव उन्हें अच्छा लगा और वन विभाग द्वारा यहाँ तीन महीने का प्रशिक्षण शिविर शुरू करवाया गया है।

डीएफओ यशुदीप सिंह ने बताया कि पहले बांस के कटान पर प्रतिबंध था लेकिन अब इसे पेड़ो की प्रजाति से बाहर कर दिया गया है जिससे अब लोग बांस की पौध तैयार कर हर तरह के उत्पाद बनाकर कमाई कर सकते हैं। डीएफओ ऊना ने कहा कि बांस की खेती होने से पर्यावरण सरंक्षण में सहयोग मिलेगा। इससे किसानों की आर्थिक आय बढेगी, जबकि लोगों को घर द्वार पर ही रोजगार मिल सकेगा।

डीएफओ यशुदीप सिंह ने कहा कि जल्द ही जिला की अन्य पंचायतों में भी इस प्रकार के प्रशिक्षण शिविर आयोजित किये जायेंगे ताकि लोग अपनी आर्थिकी मजबूत कर सके। वहीँ डीएफओ ने दावा किया कि ग्रामीणों द्वारा तैयार उत्पादों को बाजार उपलब्ध करवाने का भी प्रयास किया जा रहा है सबसे पहले सरकारी कार्यालयों में इसकी सप्लाई सुनिश्चित की जाएगी ताकि उत्पादों की बिक्री हो सके।