कुंभ: जूना अखाड़े में ग्यारह सौ साधूओं ने किया पिंडदान

ख़बरें अभी तक। सनातन परंपरा के सबसे बड़े आखड़े जूना में धर्म के रक्षक कहे जाने वाले नागाओ की परंपरा पूरी करायी गई। पूर्व में सन्यास धारण किए संतो को पूरे विधि विधान से आखड़ों की परंपरा के अनुसार गंगा के तट पर नागा संत बनाया गया। यह संत कई वर्षो तक अपने गुरु के साथ रहने के बाद नागा बनाये गए है ।

बता दें कि कुंभ के दौरान नागा बनाए जाने की परंपरा है। जूना अखाड़ा के सचिव महंत हरि गिरि ने बताया कि प्रयागराज में जिन्हें नागा बनाया जाता है उन्हें राजराजेश्वर कहा जाता है। हरिद्वार में जिन्हें दीक्षा दी जाती है उन्हें बर्फानी नागा कहा जाता है। त्रयंबकेश्वर नासिक में जिन्हें नागा बनाया जाता है। उन्हें खिचड़ी नागा कहते है। उज्जैन में जिन्हें नागा परंपरा की दीक्षा दी जाती है उन्हें खूनी नागा कहते हैं।

इन नागाओं के दो प्रकार होते हैं। जिन्हें दिगम्बर और श्री दिगम्बर कहा जाता है। श्री दिगम्बर आजीवन दिगम्बर रहते हैं। और दिगम्बर कुंभ के मेले में दिगम्बर हो जाते हैं।और अन्य समाज में जाते हैं तो वस्त्र धारण कर सकते हैं।कुंभ में खासतौर से नागा सन्यासियों की दीक्षा दी जाती है।

सत्य चैतन्य पूरी महाराज के मुताबिक अब से यह पूरे तौर पर नागा सन्यासी हो गए हैं।संसार की माया मोह से मुक्त होकर यह अपने इष्ट की साधना करेंगे। नागा परंपरा के दौरान वैदिक क्रियाओं के अनुसार दीक्षा देने वाले जूना अखाड़े के पुरोहित आचार्य संतोष मिश्रा ने बताया कि सबसे पहले इनका क्षौर्य कर्म होता हैं। इसके पश्चात इनका दशविधि स्नान कराया जाता हैं। जिसमें पंचगव्य,गाय का गोबर ,गोमूत्र , दही ,भस्म ,चन्दन ,हल्दी से दशविधि स्नान संस्कार कराए गए। दैहिक और क्योंकि दोनों स्नान का हो जाता है। माना जाता है कि इस स्नान के बाद उनके मनुष्य जीवन के पाप नष्ट हो जाते हैं।यह मानव जीवन से अलग संत परिवेश में जीवन जीते हैं। परिवार सहित सभी सांसारिक रिश्ते नातों के बंधनों से अब यह मुक्त हो गए है। यह सभी आजीवन जमीन में ही सोएंगे। एक वक्त का भोजन करेंगे। अब यह अपने गुरु की आज्ञा का पालन करेंगे और इष्टदेव की साधना के सिवा किसी के सामने नतमस्तक नहीं होंगे।अब से आंतरिक और बाहर दोनों की शुद्धि हो जाती है।

इसके पश्चात उपनयन संस्कार होते हैं। जिसे हम जनेऊ संस्कार कहते हैं। जनेऊ संस्कार के पश्चात यह पिंडदान करते हैं। अपने परिवार अपने माता पिता सहित चौदह पीढ़ियों का पिंडदान किया ।साथ ही एक पिंड यह अपना भी करते हैं। पिंडदान आत्मा का परमात्मा से मिलन का प्रतीक स्वरूप होता है।

पिंडदान करने के पश्चात यह गंगा में शुद्धि करेंगे और अखाड़े में जाएंगे जहां पर आधी रात को आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी महाराज इन्हें नागा बनाएंगे इसके बाद धर्म ध्वजा के नीचे इन्हें गुरु दीक्षा दी जाएगी। जहां सांसारिक जीवन के लोगों को नहीं जाने दिया जाता। इस दीक्षा में सिर्फ अखाड़े के आचार्य और नागा संत सहित अखाड़ों के वरिष्ठ संत उपस्थित होते हैं। नागा संस्कार के क्रिया करवा रहे आचार्य संतोष मिश्रा ने बताया कि अगले दिन के सूर्योदय के साथ यह विधिवत नागा सन्यासी हो जाएंगे। इनका संसार से कोई लेना-देना नहीं रहेगा। अब यह सर्फ अपने गुरु के रहेंगे।