सरकारों के लिए गले का फांस बना एम्स निर्माण का मामला

ख़बरें अभी तक। सीएम की घोषणा के बावजूद विवादों में उलझा मनेठी में एम्स निर्माण का मामला अब क्षेत्र के लोगों के लिए जीवन-मरण का प्रश्र बन गया है तो वहीं केंद्र व प्रदेश की सरकारों के लिए भी यह मुद्दा गले की फांस बनता जा रहा है। एम्स निर्माण को लेकर संघर्ष समिति के बैनर तले पिछले 39 दिनों से धरने पर बैठे क्षेत्र के लोगों ने अब न केवल स्थानीय जनप्रतिनिधियों से इस्तीफे की मांग शुरू कर दी है, बल्कि आने वाले चुनावों में ऐसे नेताओं के बहिष्कार की भी चेतावनी दी है।

रेवाड़ी में आयोजित प्रेसवार्ता में संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि 11 विधायकों के प्रस्ताव पर मोहर लगाते हुए 3 साल पहले स्वयं मुख्यमंत्री ने मनेठी में एम्स निर्माण की घोषणा की थी, जिसके बाद ग्राम पंचायत जमीन देने सहित एम्स से संबंधित सभी शर्तें भी पूरी कर चुकी है, लेकिन बाद में सीएम ने यह कहकर वादाखिलाफी कर दी कि यहां एम्स का निर्माण नहीं कराया जा सकता।

इसके लिए उन्होंने क्षेत्रीय सांसद को दोषी ठहराते हुए कहा कि सही पैरवी के अभाव में यह निर्माण अधर में लटक गया है। इतना ही नहीं, जब लोग दीवाली मना रहे थे तो यहां पिछले 9 दिनों से क्रमिक अनशन पर बैठे भूखे-प्यासे लोगों की सुध लेने के लिए भी अभी तक कोई जनप्रतिनिधि नहीं पहुंचा, जिससे यह कहने से भी गुरेज नहीं किया जा सकता कि इस गूंगी बहरी सरकार को आमजन के हितों से कोई सरोकार नहीं रह गया है।

उन्होंने ऐलान किया कि 11 नवंबर को वे हजारों की संख्या में पदयात्रा कर जिला सचिवालय पहुंच उपायुक्त के माध्यम से प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपेंगे और अगर इसके बावजूद सुनवाई नहीं हुई तो आंदोलन को और अधिक तेज किया जाएगा। अब देखना होगा कि 11 नवंबर को उमडऩे वाले जनसैलाब से सरकार पर क्या असर पड़ता है। क्या सरकार ग्रामीणों की आवाज पर एम्स निर्माण को लेकर कोई कदम उठाएगी या फिर उनकी आवाज राजनीति की भेंट चढ़कर दम तोड़ जाएगी।