सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बार काउंसिल ने जताया विरोध

ख़बरें अभी तक। हिमाचल बार काउंसिल की मांग सेवानिवृत्त होने के बाद हाईकोर्ट और सुपीम कोर्ट के जजों को न दिया जाए कोई पद। बार काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट के वकीलों की हड़ताल और विरोध पर जाने के अधिकार पर रोक लगाने के फैसले का भी किया विरोध, कहा कोर्ट के ज़रिए अधिवक्ताओं को कंट्रोल करना चाहती है सरकार।

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर बार काउंसिल विरोध पर उतर आई है। बार काउंसिल ने इसे अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के साथ मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप बताया है। इस फरमान के बाद अब वकील हड़ताल नहीं कर सकेंगे, सुप्रीम कोर्ट ने 28 मार्च 2018 को एक फैसले में वकीलों को हड़ताल पर जाना असवैधानिक बताया है। बार काउंसिल ने इसे मौलिक अधिकारों का हनन बताया है और न्यायपालिका पर हावी होने के आरोप लगाए है।

सुप्रीम कोर्ट के 28 मार्च 2018 को आये एक फैसले के बाद वकीलों को न्यायालय में किसी मामले को लेकर हड़ताल और बायकाट करने के अधिकार पर रोक लगा दी है। अगर कोई भी वकील प्रदर्शन करता है तो वो न्यायालय की अवमानना होगी। जिसका बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने विरोध किया है और फैसले को वकीलों के मौलिक अधिकारों पर हमला बताया है। मामले को लेकर दिल्ली में हुई बार काउंसिल ऑफ इंडिया की मीटिंग में एक रेज्यूलशन पास किया गया है जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ़ 17 सितम्बर को सभी राज्यों की बार कॉउंसिल मुख्यमंत्री, गवर्नर और उपायुक्त को ज्ञापन सौपेंगे.

वकीलों ने सरकार पर न्यायपालिका पर हावी होने के गंभीर आरोप लगाए हैं और कहा है कि वकीलों के मौलिक अधिकार इस फैसले बाद खतरे में पड़ गए हैं।बार काउंसिल ऑफ हिमाचल के अध्यक्ष रमाकांत शर्मा ने बताया कि दिल्ली में 1 सितंबर को हुई बार कॉउंसिल ऑफ इंडिया की मीटिंग में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रेज्यूलशन पास किया है कि इस फैसले के विरोध में देश भर बार कॉउंसिल प्रदर्शन करेंगी। आगामी 17 सितम्बर को जिलो और राज्यों स्तर पर फैसले के खिलाफ बार कौंसिल मेंबर उपायुक्तो और संसदीय सदस्यों को फैसले के विरोध में ज्ञापन सौंपेंगे।

इसके अतिरिक्त वकीलों ने जजों को रिटायर होने के बाद किसी भी तरह की पदों पर नियुक्ति न होने की मांग की है। बार कॉउंसिल ऑफ इंडिया की मीटिंग में एक और रेज्यूलशन पास किया गया जिसमें वकीलों की सुरक्षा के लिए एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की बनाने की मांग की है जिसमें वकीलों को बीमा, स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी व्यवस्था करने की सरकार से मांग की गई है।