डबवाली की जूती पूरे देश में मशहूर, कई राज्यों में है डिमाड़

खबरें अभी तक। सिरसा के डबवाली की महिलाओं द्वारा बनाई गई जूती पूरे देश में मशहूर है। घर की चारदिवारी में महिलाएं जूती बनाती है। एक दिन में ये महिलाएं केवल 6 या इससे अधिक जूती ही बना पाती है जिसका उन्होंने 20 रूपये का मेहनताना प्रति जूती के हिसाब से दिया जाता है। महिलाओं द्वारा बनाई गई जूती देश के अनेक राज्यों में सप्लाई होती है। जूती बनाने के उद्योग में डबवाली की अनेक महिलाएं कामकाज में जुटी है। डबवाली में लेडिज आइटम में वर्क, सिंपल, लेंदर, नोंक तरह की जूती बनती है और जेंटस आइटम में खोसा, गोल, सिंपल, लेंदर में कुरम जैसी वैरायटी तैयार की जाती है।

जूते चप्पल में आज कई ब्रांडेड कंपनियां बाजार पर कब्जा किए हुए है इसके बावजूद डबवाली में तैयार होने वाली जूती कई राज्यों की महिलाओं के लिए किसी ब्रांड से कम नहीं है। यहां तैयार होने वाली डिजाइनर जूती की डिमांड देश के कई राज्यों में है। जूती ने इन राज्यों में डबवाली को एक अलग पहचान दिलाई हैं वहीं यह लघु जूती उद्योग डबवाली शहर के हजारों हाथों को रोजगार दे रहा है। इस काम में दलित समुदाय की महिलाएं बडी संख्या में लगी हुई हैं।

डबवाली में पिछले 30 सालों से महिलाएं जूती बनाने के काम में जुटी हुई हैं। डबवाली के रविदास नगर में पेशे से जुडे 250 घर जूती बनाने का काम कर रहे है। घरों की महिलाएं व पुरूष कमीशन पर जूती तैयार करते है। महिलाओं को जूती तैयार करने पर 30 से 40 रूपये मेहनताना मिलता है। पूरे दिन में केवल 6 ही जूती बनती हैं।

मीनू ने बताया कि उनके पिता की मृत्यु होने के कारण घर का खर्चा चलाने में मुश्किल होती थी। उन्होंने कहा कि वे पिछले 11 सालों से जूती बनाने का काम कर रही है। उन्हेंने कहा कि इस जूती को बनाने में काफी मेहनत लगती है लेकिन उतना मेहनताना नहीं मिलता। उन्हेंने कहा कि वे एक दिन में सिर्फ 6 जूती ही बना पाती है जिसका कमीशन उनको प्रति जूती के हिसाब से 20 रूपये प्रतिदिन मिलता हैं। उन्हेंने कहा कि वे दिहाडी पर जूती बनाकर दुकानदार को भेज देती है।

गीता रानी ने बताया कि उनके पति दिहाडी पर काम करते है जिसकारण घर का गुजारा मुश्किल से चलता था। उन्होंने कहा कि वे अब पिछले 10 सालो ंसे जूती बना रही है। उन्हेंने कहा कि उन्हें एक जूती बनाने में 40 रूपये मेहनताना मिलता है। उन्हेंने कहा कि एक दिन में केवल 4 जूती ही बना पाती है। उन्हेंने कहा कि उनके द्वारा बनाई गई जूती हरियाणा, पंजाब,  राजस्थान , दिल्ली व मुंबई जैसे अनेक राज्यों में भेजी जाती है।

दुकानदार पूर्णचंद ने बताया कि महिला व पुरूष जो जूती बनाते है उनको अलग अलग काम के हिसाब तरीके से लेबर दी जाती है। उन्हेंने कहा कि

महिलाओं को सिलाई के लिए 50 से 60 रूपये दिए जाते है। उन्होंने कहा कि कढाई का काम डबवाली में कम होता है लेकिन सिलाई का काम महिलाएं कर रही है। उन्हेंने कहा कि जमाने के हिसाब से महिलाओं की जूती की वैरायटी में काफी बदलाव आता है इसलिए नई आईटम मार्किट में लानी पडती है। उन्होंने कहा कि बरेली से इस जूती को तैयार किया जाता है। उन्होंने कहा कि जूती उनकी दुकान से करीब 500 रूपये में सेल होती है जिसके बाद बडे शहरों में तीन गुना दामों में ग्राहकों को बेची जाती है।

वहीं ग्राहकों ने बताया कि डबवाली की जूती पूरे देश में मशहूर है और वे बठिंडा व मलोट से इन जूती को लेने कई बार आ चुके है। उन्होंने कहा कि ये जूती मजबूत और सस्ती भी है ओर काफी वैरायटी मिलने के कारण लोगो को काफी पंसद भी आती है।