बाघेश्वरी धाम पर 9 अगस्त को लगेगा विशाल मेला, प्रसाशन ने की सभी तैयारियां

खबरें अभी तक। कनीना उपमंडल के गांव बाघोत में बाघेश्वरी धाम पर लगा शिव भक्तों का तांता वहीं श्व्यम्भु पर लाखों भक्तों ने जल चढ़ाकर लगाये हर हर महादेव के नारे। वहीँ हरिद्वार नीलकंठ से भक्तजन कावड़ व गंगाजल लाकर चढाते हैं स्वयंभू पर गंगाजल और मांगते है मन्नत।

कनीना से मात्र 15 किमी की दुरी पर बाघोत गांव में स्थित लगभग 5000 साल प्राचीन शिवमंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है। वहीँ कथा के मुताबिक बाघोत का प्राचीन नाम हरियक वन था।  इस वन में दधिची ऋषि के पुत्र पिप्लाद ने तप किया था उनके कुल के राजा दलीप को कोई संतान नहीं थी। जिससे वह दुखी होकर अपने कुलगुरु वसिष्ठ के पास गए और उन्हें अपनी समस्या बताई। गुरु वसिष्ठ ने पिप्लादास ऋषि के आश्रम में ननदिया गाय और कपिला नामक बछिया को नहलाकर जंगल में चराने का निर्देश दिया।  राजा दलीप 20 दिनों तक निराहार ननदिया गाय और कपिला बछिया को चराते रहे।

21वें दिन जंगल में गए तो शिव भगवन ने राजा दलीप की परीक्षा लेने के मकसद से बाघ का रूप धारण कर बछिया पर हमला करना चाहा तो राजा दलीप की नजर बाघ पर पड़ी तो अपने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और बाघ से विनती करते हुए कहा की वह गाय व बछिया को बख्श दें और उन्हें अपना ग्रास बना लें।

इतना कह कर राजा स्वयं को बाघ के सामने पटक दिया। अगले ही पल जब राजा ने पलक उठा कर देखा तो उनके सामने साक्षात् शिव भगवन खड़े हुए थे। राजा दलीप अपनी इस परीक्षा में सफल हुए और इस स्थान का नाम बाघोत पड़ा जो आज बाघेस्वर धाम से प्रखाय्त है।

आपको बता दे की पुरे सावन बाघेस्वारी धाम पर मेला लगता है यहां पर लाखों भक्त हरिद्वार, गौमुख व गंगोत्री से कावड़ व गंगाजल लाकर चढाते हैं।  इस धाम में लोगों की अटूट आस्था होने के कारण यहां देश के हर कोने से भक्त अपनी मन्नते मांगने आते हैं।