भिवानी के 11 जवानों ने दी थी कारगिल में शहादत

ख़बरें अभी तक। 1962,1965,1971 और 1999 जब देश की सरहदें खतरें में पड़ी तो हमारे जांबाजों ने अपना सबकुछ लुटा दिया ताकि देश पर कोई आंच ना आयें और उनकी वजह से ही आज हम खुली हवा में सास ले रहें है. कारगिल युद्ध में भिवानी के  ग्यारह रणबांकुरों ने देश के लिए शहादत दी थी तो दर्जनों ने अपने अंग गंवाए हैं। सीमा पर वीरों ने दमखम दिखाए तो कोसों दूर बैठे देशवासियों ने भी कम काम नहीं किया। कारगिल विजय को आज 17  वर्ष हो चुके है लेकिन उन सैनिक परिवारों के जख्म आज भी वैसे ही है जिन्हे याद करके आंखों से आंसू नहीं रूकते. सरकार की तरफ से शहर में कोई कार्यक्रम आयोजित ना करना भी शहीदों के प्रति बेरूखी साफ दिखाती है.

वर्ष 1999 में भारत पाक के बीच हुए कारगिल युद्ध को भले ही लोगों व सरकार ने भुला दिया हो, मगर उस क्षेत्र के लोग इस युद्ध को कैसे भूल सकते हैं जहां के लोगों ने लड़ाई में योगदान दिया. राजस्थान के झुंझनू जिले के वीरों की शहादत के बाद हरियाणा के भिवानी जिले के लोगों ने कारगिल युद्ध में शहादत दिए जाने के मामले में दूसरा स्थान प्राप्त किया, जबकि भिवानी हरियाणा का पहला ऐसा जिला था जिसने कारगिल में सर्वाधिक सैनिकों के प्राणों की आहूति दी. कारगिल युद्ध में जान गंवाने वालों में जिले के गांव मौड़ी निवासी हवलदार राजबीर, गांव पुर निवासी हवलदार सिद्धकाम,रावलधी निवासी राजकुमार, बड़दू निवासी सुरेन्द्र,चरखी निवासी सिपाही सुरेश, देवावास निवासी हवलदार राजकुमार, महराना निवासी कुलदीप, मधमाधवी निवासी संजय सिंह,डांडमा निवासी नरेश कुमार एवं गांव गोकुल निवासी हवलदार लालसिंह के नाम शामिल है.

 

युद्ध की शुरूआत होने के बाद भिवानी जिले के तीन शहीदों के पार्थिव शरीर जब भिवानी पहुंचे तो यहां के लोगों ने सैनिकों के लिए रक्तदान करने की ठानी और शुरूआती जंग में शहीद तीनों जवानों के वजन से भी ज्यादा 336 यूनिट रक्त देकर अपना फर्ज अदा किया. दिल्ली के अलावा अन्य बड़े शहरों में लगाए गए रक्तदान शिविरों का रक्त भले ही कारगिल के जवानों तक ना पहुंचा हो मगर भिवानी के लोगों का रक्त वहां तक पहुंचा. हरियाणा शांतिसेना प्रमुख एवं छात्र नेता संपूर्ण सिंह के नेतृत्व में युवाओं ने ही नहीं उन महिलाओं ने भी रक्तदान किया था, जिन्हें कारगिल युद्ध के बारे में जानकारी थी. कारगिल युद्ध के दौरान रक्तदान व रक्त सैन्य अधिकारियों को सौंपे जाने की तस्वीरें आज भी इस बात की गवाह है.

युद्ध में शहादत देने वालों के परिवारों से बात की तो उनका दर्द आंखों से साफ झलग रहा था. गांव रावलधी निवासी शहीद राजकुमार की पत्नी नीलम ने जिस कदर भावुक होते हुए हर एक बात बयां की उससे हर कोई सोचने पर मजबूर हो जाएगा. नीलम के अनुसार एक समय था जब हर कोई सेना में भर्ती होना चाहता था मगर आज शहीदों की दुर्गति को देखकर लोग गुरेज करने लगे है. सबको पता है कि चार दिन शहीदों के अमर होने के नारे लगेंगे, उसके बाद हर कोई भुला देगा.

उनका कहना था जब उनके पति शहीद हुए तो उनका बेटा जतिन महज तेरह माह का था तथा उनके उपर जिस कदर दु:खों का पहाड़ टूटा वे ही जानती है. सरकार ने एक बार तो आर्थिक सहायता कर दी मगर अब कोई पूछने वाला नहीं है. पन्द्रह अगस्त व 26 जनवरी के दिन प्रशासन के द्वारा समारोह के लिनए न्यौता तो मिलता है मगर उन्हें खुद ये पूछना पड़ता है कि कहां बैठना है व बैठने तक को जगह नहीं मिलती. बताना पड़ता है कि वे कारगिल शहीद की विधवा हैं. उनका कहना था कि नौजवान शहीद हो रहे हैं सबको पता है शहीद होना है व परिवारों के साथ फिर ऐसे ही हालात सामने आने हें इसलिए अब हर कोई सेना में भर्ती नहीं होना चाहता.

नीलम के अनुसार उन्होंने अपने पति को खोया तो भी उनका बेटा डॉक्टर बनकर फौजियों की सेवा करना चाहता है क्योंकि उनके बेटे को लगता है कि उसके पिता को घायल होने पर ईलाज मिला अथवा नहीं. इसी बात की कसक है. उन्होंने कहा कि बेटा गया बिहार में एमबीबीएस कर रहा है व विडंबना है कि चाहकर भी वह नजदीक नहीं रह सकता क्योंकि सरकार के द्वारा शहीदों के परिवारों की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा. उन्होंने यह भी कहा कि हम चीन का सामान लेकर उनकी सेना को ही मजबूत कर रहे है. उनका कहना है कि युद्धों से समस्याओं का हल नहीं होता बल्कि कई घर बर्बाद होते है. सरकारों को शांति के लिए प्रयास करने चाहिए.

गांव मौड़ी निवासी शहीद राजबीर सिंह के परिजनों के भी इस बात का मलाल है कि सरकार एक बार आर्थिक सहायता देकर शहीदों को भुला देती है. राजबीर की पत्नी कमलेश का कहना था कि शहीदों के परिवारों की सरकार के द्वारा अनदेखी की जाती है. हमारी सेना मजबूत है तथा उसे पेरी छूट दी जानी चाहिए. कमलेश ने पति की शहादत का भी जिक्र किया व बताया कि उन्हें तो शहादत के डेढ़ माह बाद इस बात की जानकारी हुई कि उनके पति शहीद हो गए. राजबीर सिंह दादरी जिले के मौड़ी गांव के थे तथा 4 जाट रेजीमेंट में तैनात थे. लैफ्टिनेंट अमित भारद्वाज का भी उन्होंने जिक्र किया तो वहीं शहीद के बेटे राहुल ने भी अपना दर्द बयां किया. राहुल के अनुसार सरकार मामले में हीलाहवाली करती है व वह चाहकर भी देश सेवा नहीं कर पा रहा. हालांकि उनके मन में देश की सेवा करने का जज्बा अपने पिता की तरह ही है मगर उसे मौका नहीं मिल रहा है क्योंकि सरकार की ओर कोई कोटा नहीं मिल रहा है व ना ही कोई दूसरी स्पोर्ट.

पूरा देश कारगिल शहीदों की याद में भले ही विजय दिवस मना रहा हो मगर अपने पति व पिता खोने का दर्द इन शहीद परिवारों के परिजन ही जानते है. लगातार चीन व पाक द्वारा मारे जा रहे फौजियों पर भी शहीद परिवारों का कहना है कि सरकारों को इस ओर ध्यान देना चाहिए ताकि घर ना उजड़े व कोई ठोस रणनीति भी तैयार कर फौज को पूरे अधिकार देने चाहिए तो फौज को पूरी तरह हथियारो से लैस किया जाना चाहिए.