भिवानी निवासियों ने मनाया 100 साल की बुजुर्ग का जन्मदिवस, शहर की सबसे बुजुर्ग महिला बनी सावित्री

खबरें अभी तक। भिवानी निवासियों ने आज भिवानी की सबसे उम्र दराज महिला सावित्री का जन्म दिवस मनाया। सावित्री 100 वर्ष की हो गई है। उनके जन्म दिवस पर ना केवल 100 व्यक्तियों का पूरा कुनबा एकत्रित हुआ बल्कि शहर के भी  लोग सावित्री को अपनी पलको पर बैठाया। लोगों ने सावित्री देवी को सम्मानित किया। इसी कड़ी में दैनिक रेल यात्री संघ ने भी सावित्री को सम्मानित किया। सावित्री भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री मनोहर लाल की बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओ की मुहिम को सही करार देती है और कहती है कि बेटियों केा ज्यादा से ज्यादा पढ़ाना चाहिए ओर भ्रूण हत्या को तो वे पाप समझती है। उनका कहना है कि भगवान सबको उसके भागय का देता है ऐसे में भ्रूण हत्या नहीं करवानी चाहिए। हालाकि देश का बंटवारा हुए कई वर्ष हो गए है लेकिन आज भी सावित्री की आंखो में वह मंजर है जिसे वह कभी भूला नही सकती।

सावित्री देवी के जन्म दिवस पर पूरा कुनबा एकत्रित हुए ना केवल उनके बेटे बल्कि बेटों के भी बेटे तो बेटियों का परिवार भी शामिल हुआ ओर हो भी क्यों ना मॉ 100 साल की जो हुई थी। 100 साल की बुजुर्ग हालांकि अब थोडी बीमार रहने लगी है क्योंकि पिछले कुछ समय से उन्हें पेरालाईसिस का अटैक आ गया था। शरीर का आधा हिस्सा चलने फिरने नही देता तो सावित्री बिस्तर पर है लेकिन आज भी अपने बच्चों का मार्ग दर्शन करती है। हर किसी को शुभाशीश देती है ओर आगे बढऩे का मूल मंत्र भी देती है। सावित्री के 4 बेटे है तथा 7 बेटियां है। सावित्री का सबसे छोटा बेटा संतोष भिवानी रहता है तथा वे भी उनके पास रहती है।

सावित्री का सबसे छोटा बेटा संतोष का कहना है कि वे ही नही बल्कि पूरा परिवार उनकी माता से बहुत प्यार करता है। इसलिए वे लोग सभी उन्हें दुलार से रखते है। संतोष व उनकी पत्नी का कहना है कि उनकी माता के चेहरे पर कभी गुस्सा नही देखा। उन्होंने कहा कि वे चाहाते है कि उनका आशीर्वाद उन पर हमेशा बना रहे। उन्होंने कहा कि कई लोग अपने माता पिता को वृद्व आश्रम छोडक़र आते है जो कि गलत है। उन्होंने कहा कि वृद्व आश्रम छोड़ कर वे अपना स्वयं का रास्ता भी बनाते है।

उम्र के एक शताब्दी पड़ाव पूरे कर चुकी सावित्री देवी की बुढ़ी आंखों में आज भी 71 साल पहले भारत-पाक बंटवारे का वो खौफनाक मंजर अच्छी तरह याद हैं। सावित्री की बुढ़ी आंखों के सामने अतीत में डूबते ही वो खौफनाक मंजर आज भी ताजा हो आता है। दरअसल संयुक्त पंजाब के समय लाहौर में जन्मी सावित्री देवी ने नाते-पातियों, पौते पौतियों व 11 बेटे बेटियों के भरे पूरे कूनबे के साथ रविवार को बाग कोठी स्थित अपने आवास पर 100वां जन्म दिवस मनाया। इस मौके पर सावित्री ने बताया कि उनका जन्म लाहौर में महाजन परिवार में हुआ था। उस समय उसके पिता लाहौर में हलवाई का काम करते थे। 15 अगस्त 1947 को हुए भारत पाकिस्तान का बंटवारे का जिक्र करते हुए सावित्री ने बताया कि उस समय उसकी शादी हो चुकी थी। उसकी बारात भिवानी से लाहौर गई थी। उसे आज भी अच्छी तरह याद है कि बंटवारे के समय लाहौर में माहौल बहुत खराब था। हिन्दु मुस्लिम के बीच खूनी खेल खेला जा रहा था और मानों इंसान ही पूरी तरह से दो धंड़ों में बंट चुके थे। एक तरफ हिंदुओं का इलाका था तो दूसरी तरफ मुस्लमानों का इलाका। इन दोनों के बीच संघर्ष चलता तो वे घर में भी दुबककर सहम उठते थे, क्योंकि उन्हें हमेशा दिन और रात चिखने चिल्लाने की ही आवाजें सुनाई देती थी। इस खराब माहौल के कारण उसका पूरे परिवार को लाहौर से पलायन कर वापस भारत आकर यूपी के आगरा में बसना पड़ा। अब लाहौर में केवल उसकी पुरानी अतीत की यादें ही बची हैं, जबकि उसका मायका अब आगरा में बस चुका है।

सावित्री के चार बेटे और सात बेटियों का भरा पूरा परिवार है। आज उसके कूनबे में सौ से अधिक सदस्य शामिल हैं, इतने बड़े संयुक्त परिवार में वो सबसे व्यौवृद्ध महिला हैं, जिसका सिक्का आज भी चलता है। वो अपने बेटों को आज भी उनके कारोबार और गृहस्थ जीवन में उनका मार्गदर्शन करती आ रही हैं। सावित्री से उनके खानपान के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वो अब ज्यादातर तरल पदार्थ पर ही जीवन यापन करती हैं, इसके अलावा खिचड़ी दलिया भी लेती हैं। उसने बताया कि वह सुबह रोजाना चार बजे उठ जाती हैं और फिर संयमित दिनचर्या के बाद शाम को जल्दी सो जाती हैं। इस तरह से उसे कभी अंग्रेजी दवा लेने की नौबत नहीं आई। उसका बड़ा बेटा पुरूषोत्तम, राजेन्द्र, राजकुमार, राजकुमार अपने परिवार सहित उड़ीसा और दिल्ली में बस गए हैं, वहीं उनका अपना कारोबार है, जबकि सबसे छोटा बेटा संतोष और उसकी पत्नी रीना ही उसकी देखभाल यहां करते हैं। उन्होंने कहा कि उनकी माँ को कभी गुस्सा नही आता तथा वे शुरु से ही धार्मिक स्वभाव की है। बागकोठी निवासी सावित्री यहीं पर अब अपने अंतिम पल बीताना चाहती हैं। संतोष का कहना है कि वो सौभाज्यशाली हैं, जो उनके सिर पर मां का साया है। उनकी मां की हर बात मानी जाती है और हर इच्छा का सम्मान किया जाता है। सावित्री से पूछा गया कि वर्तमान परिवेश में बच्चे अपने बूढ़े मां बाप के प्रति अपनी जिम्मेवारी नहीं समझते तो उसका जवाब था कि वो खुशनसीब है कि उसकी चार बेटों व सात बेटियों के कूनबे में आज भी उनका सम्मान बरकरार है। उसके सभी बेटों की गृहस्थी और कारोबार में उनका मार्गदर्शन करती हैं और उनके बच्चे भी उनके कहे का अनुशरण करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके दौर और आज के दौर में दिन रात का अंतर आया है, लेकिन वो एक बात कहना चाहती हैं जो बच्चे अपने माता पिता का सम्मान नहीं करते, उनका पतन निश्चित हैं, क्योंकि मां बाप तो वो जड़ हैं, जिनसे निकलने वाली शाखाएं आज हर दिशा में आगे बढ़ रही हैं, अगर जड़ को काट दिया जाए तो फिर शाखाओं का कोई अस्तित्व ही नहीं बचता। इसलिए हर बच्चे को अपने माता पिता का सम्मान करना चाहिए, तभी समाज में उन्हें सम्मान मिलेगा।

रीतू अग्रवाल जो कि सावित्री की पोती है। उनका कहना है कि वे काफी खुश है तथा गर्व महसूस करती है कि उनकी दादी आज 100 वर्ष की हो चुकी है। उनहोंने कहा कि उनकी दादी से बहुत कुछ सीखा उन्हें कभी गुस्सा नही आता इसलिए वे भी अपनी दादी की तरह है कभी गुस्सा नही करती। रीतू ने तो यह तक बताया कि उनकी दादी की वजह से ही वे पढ़ी लिखी है। वही परिवार के सबसे छोटे बच्चे अक्षित का कहना है कि दादी ने कभी उन्हें डांट तक नही मारी।

वही दैनिक रेल यात्री संघ के प्रधान महाबीर डालमिया ने कहा कि आज सबसे बुजुर्ग महिला का सम्मान किया जा रहा है तथा वे भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए है। उन्होंने कहा कि बुजुर्गो का सम्मान करना चाहिए। डालमिया ने कहा कि उनके बच्चें संस्कार वान है तथा संस्कार वान होने के कारण वे अपनी माता का पूर्ण सम्मान करते हेै ओर उन्होंने अपील कि प्रत्येक बेटों से कि अपनी माता पिता की सेवा करे तथा वृद्व आश्रम के कल्चर को खत्म करे।