हिमाचल के हाथ से फिसल जाएगा 700 करोड़ का प्रोजेक्ट

खबरें अभी तक। राज्य सरकार और वन विभाग के अफसरों द्वारा विश्व बैंक के समक्ष मजबूती के साथ पक्ष न रख पाने की वजह से करोड़ों का इंटीग्रेटिड डिवेल्पमेंट प्रोजेक्ट अब ठंडे बस्ते में चला गया है। इसके लिए सीधे सीधे राज्य सरकार ही जिम्मेवार है। विडंबना यह है कि इस प्रोजेक्ट के सिरे न चढऩे की वजह से मिड हिमालय प्रोजेक्ट में कार्यरत 1500 कर्मचारियों की नौकरी पर तलवार लटक गई है।

रविवार को यह बात नयनादेवी के विधायक एवं पार्टी के प्रदेश महासचिव रामलाल ठाकुर ने पत्रकारों के साथ बातचीत में कही। रामलाल ठाकुर ने बताया कि इसे प्रदेश सरकार और वन विभाग के अधिकारियों की अनुभवहीनता ही कहा जाएगा जिससे इंटेग्रेटेड डेवलोपमेन्ट प्रोजेक्ट खटाई में पड़ गया है। उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट का समायोजन विश्व बैंक के तहत करीब 700 करोड़ रुपये प्रथम कि़स्त के तौर पर होना था, जो कि बाद में बढ़ कर करीब 1500 से 2000 करोड़ रुपये तक हिमाचल प्रदेश की विकासात्मक छोटी छोटी योजनाओं पर खर्च किया जाना तय था। इस प्रोजेक्ट का शुभारंभ पूर्व कांग्रेस की सरकार के समय पूर्व वन मंत्री ने जिला चम्बा के भरमौर में अक्तूबर 2017 में किया था।

उन्होंने बताया कि जैसे ही प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ, वैसे ही इस प्रोजेक्ट के मुख्यालय को लेकर वन विभाग के अधिकारियों व उनके राजनैतिक आकाओं में खींचतान शुरू हो गई। कुछ प्रदेश सरकार में बैठे नेता इसको धर्मशाला में खोलना चाहते थे तो कुछ सोलन में खोलना चाहते थे। सोलन में इसलिये भी ठीक रहता ताकि वहां पर पहले से ही मिड हिमालय प्रोजेक्ट का मुख्यालय था जिसमे प्रदेश सरकार का खर्च भी कम हो सकता था।

रामलाल ठाकुर के अनुसार इस प्रोजेक्ट को हिमाचल प्रदेश में न ला पाने के पीछे वन विभाग व प्रदेश से सरकार की बड़ी असफलता रही है, जिसके कारण मिड हिमालय में कार्यरत करीब 1500 कर्मचारियों को अपना रोजगार खोना पड़ रहा है। ये इतनी बड़ी असफलता किसी भी बड़ी महत्वपूर्ण योजनाओं में नहीं रही है। उन्होंने कहा कि होता यूं था कि जिस तिथि को एक प्रोजेक्ट बन्द होता था ठीक उसके दूसरे ही दिन कोई नया प्रोजेक्ट शुरू हो जाता था। इसी कड़ी में कंडी प्रोजेक्ट, चंगर प्रोजेक्ट व मिड हिमालय प्रोजेक्ट क्रमश: ही लाये गए थे, लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि मिड हिमालय के बाद अब यह इंटेग्रेटेड डिवेलपमेंट प्रोजेक्ट हिमाचल प्रदेश में आना था जिसकी सैद्धांतिक मंजूरी पूर्व सरकार के समय ही मिल गई थी, लेकिन प्रदेश सरकार व वन विभाग के अधिकारी विश्व बैंक के सामने अपना पक्ष मजबूती से रखने में विफल रहे और अब यह प्रोजेक्ट प्रदेश सरकार के हाथ से फिसलता हुआ नजर आता है।

उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट के माध्यम से प्रदेश में एग्रो प्रोडक्ट बेस्ड लघु उद्योगों, सिंचाई योजनाओं व युवाओं को नए रोजगार का सृजन होना था लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद प्रदेश सरकार ने मिड हिमालय प्रोजेक्ट में काम करने वाले अनुभवी अधिकारियों को बदल कर अन्य अनुभवहीन अधिकारियों को इस प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी दे दी। वे अपना पक्ष विश्व बैंक के सामने ठीक से नहीं रख पाए और इस प्रोजेक्ट का न ला

पाना प्रदेश सरकार की अनुभव हीनता पर बड़ा प्रश्न खड़ा करता है। रामलाल ने कहा कि अभी तक कोई एमओयू तक साइन नहीं हो पाया और यह प्रदेश सरकार के प्रथम छह माह की सबसे बड़ी असफलता रही है।

विश्व बैंक के समक्ष अपना पक्ष मजबूती से न रख पाने की वजह से अब इंटीग्रेटिड डिवेल्पमेंट प्रोजेक्ट खटाई में पड़ गया है जिसके लिए सीधे तौर पर प्रदेश सरकार जिम्मेवार है। इसकी वजह से मिड हिमालय में कार्यरत करीब 1500 कर्मचारियों को अपना रोजगार खोना पड़ रहा है।