भर्ती प्रक्रिया पर उठाए सवाल, शिकायत निदेशक तक पहुंची

खबरें अभी तक। सूबे में सबसे ज्यादा मलेरिया केसों के लिए पहचान बनाने वाले नूंह जिला में इस बार मलेरिया को जड़ से समाप्त करने के लिए स्वास्थ्य सहायक और सुपरवाइजर के पदों पर करीब 230 नियुक्तियां की थी। नियुक्तियों में तय समय सीमा से अधिक समय लिया गया। भर्ती में कई सालों के दवाई छिड़कने वाले तजुर्बेकार लोगों को भी जगह नहीं दी गई। इलाके के लोगों ने भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसकी शिकायत निदेशक एन एच एम तक कर दी। विभाग इसे अब भी सिर्फ आरोप ही मान रहा है।
आपको बता दें कि नूंह जिले में 3 हजार से अधिक मलेरिया के पॉजिटिव केस हैं। बरसात के दिनों में जलभराव की वजह से मच्छर ओर मलेरिया बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। स्वास्थ्य सहायक 195 तो करीब 39 पदों पर सुपरवाईजर की नियुक्ति की गई है। स्वास्थ्य सहायक मच्छर मारने वाली दवा का छिड़काव गांव गांव जाकर करेंगे। आशंका जताई जा रही है कि इन नियुक्तियों में 10 हजार रुपये प्रति व्यक्ति बहुत से आवेदकों से रिश्वत ली गई है। नूंह जिले में पुन्हाना खंड और नूंह खण्ड के दर्जनों गांव हाई रिस्क जॉन में आते हैं। उजिना नहर और गुड़गांव कैनाल में भी मलेरिया का लार्वा आने का खतरा रहता है। इस बार मलेरिया इलाके के लोगों की सेहत खराब न करें, इसलिए इंतजाम पहले ही शुरू हो गए।
खास बात यह है कि, अधिकारी भले ही बदल जाएं लेकिन भर्तियों में गड़बड़ झाले का तरीका नहीं बदला है। स्वास्थ्य विभाग इस बार फिर सुर्खियों में है। चन्द माह पहले ही सीएमओ श्रीराम सिवाच और जतिंदर कुमार सपरा को सस्पेंड और बर्खास्त करने की खबरों से विभाग की खासी बदनामी हुई थी। स्वास्थ्य विभाग अब निदेशक को जवाब देने की तैयारियों में जुट गया है। बेरोजगारी का आलम यह है कि डीसी रेट पर महज 5 महीने का रोजगार पाने के लिए न केवल सैकड़ों पढ़े-लिखे लोगों ने आवेदन किया बल्कि नियुक्ति के लिए रिश्वत तक देनी पड़ी थी। भर्ती की अगर निष्पक्ष तरीके से जांच की जाए, तो बड़ा गड़बड़ झाला उजागर होने से इंकार नहीं किया जा सकता।