व्यापारिक जंग में पूरी तरह फंसते नजर आ रहे है अमेरिका और चीन के संबंध

खबरें अभी तक।  अमेरिका और चीन के बीच छिड़ी जंग तो अब जग जाहिर हो चुकी है.कारण है अमेरिका का चीन से व्यापारिक मुद्दा. चीन की बचकानी हरकतों से अमेरिका भी पूरी तरह से वाकिफ हो चुका है इसके चलते अमेरिका ने चीन में निर्यात की गयी वस्तुओं पर अधिक निर्यात शुल्क लगा दिया है. इस पूरे प्रकरण को व्यापिरक जंग कहना गलत नहीं होगा.

एक ओर जहां अमेरिका ने स्टील और एल्यूमीनियम पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है. जो देश अमेरिका के साथ ज्यादा आयात करते हैं उन्हें इससे छूट दी गई है (शायद अस्थायी रूप से), लेकिन इन देशों में चीन शामिल नहीं है.वहीं दूसरी ओर कार्रवाई में चीन ने भी पोर्क, वाइन, फल और सूखे मेवों जैसे अमरीकी उत्पादों के आयात पर शुल्क बढ़ा दिया है.

अगर बात पिछले साल की जाए तो अमेरिका ने चीन से लगभग 3 बिलियन डॉलर का स्टील और एल्यूमीनियम आयात किया. ये अमरीका में चीन से आयात का एक फ़ीसदी से भी कम था.चीन की जवाबी कार्रवाई भी अमरीका से व्यापार के इतने ही हिस्से पर है, लेकिन ये शेयर अमरीका के मुकाबले कुछ ज्यादा (करीब 2%) है.

कुछ लोगं का ऐसा भी मानना है कि स्टील और एल्यूमीनियम पर लगाया गया शुल्क ट्रेड वॉर का कारण नहीं बन सकता क्योंकि ये सीधे तौर पर चीन के लिए नहीं था.

कोई नया नहीं है ये विवाद-

आपको बता दे कि ये विवाद कुछ नया नहीं है. इससे पहले भी कई व्यापारिक झगड़े होते रहे है जिसमें दोनें देशों के बीच व्यापारिक जंग छिड़ी हैं. याद होगा कि जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने भी अपने राष्ट्रपतिकाल के शुरुआती दिनों में स्टील पर शुल्क लगाया था और इसके जवाब में यूरोपीय संघ ने भी कई शुल्क लगा दिए थे. इसके अलावा उसने कई दूसरे देशों के साथ मिलकर विश्व व्यापार संगठन में शिकायत भी दर्ज करवाई थी.

अमरीका चीन

लेकिन वो जवाबी कार्रवाई कभी अमल में आई ही नहीं क्योंकि डब्ल्यूटीओ से प्रतिकूल फ़ैसला आने के बाद अमरीका ने स्टील पर लगाया शुल्क वापस ले लिया था.1960 में ‘चिकन वॉर’ नाम की व्यापारिक झड़प देखने को मिली थी. अमरीका के सस्ते आयात पर शुल्क के जवाब में जर्मनी और फ्रांस ने उनके यहां से आयात होने वाले चिकन पर शुल्क लगा दिया था. अमरीका ने पलटवार करते हुए आलू के स्टार्च, डेक्सट्रिन, ब्रांडी और लाइट ट्रकों पर शुल्क लगा दिया था.