फिर भड़के जस्टिस चेलमेश्वर, न्यायपालिका में सरकार की दखलंदाजी पर जताया ऐतराज

ढाई महीने पहले प्रधान न्यायाधीश की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वाले सुप्रीम कोर्ट के दूसरे नंबर के वरिष्ठतम न्यायाधीश जे. चेलेमेश्वर इस बार सरकार और न्यायपालिका के बीच कथित दोस्ती और मेलजोल पर भड़क गए हैं। सरकार की चिट्ठी पर सक्रिय हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का मामला उठाते हुए उन्होंने कहा कि यह ‘दोस्ती’ लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। उन्होंने न्यायिक नियुक्ति में सरकार की दखलंदाजी पर फुल कोर्ट में विचार किये जाने की मांग की है। उन्होंने अपने इस पत्र की कापी सुप्रीम कोर्ट के अन्य 22 जजों को भी भेजी है।

न्यायपालिका का संकट खत्म नहीं हो रहा है और राजनीति उसके आधार पर गरमाती जा रही है। जस्टिस चेलमेश्वर की अगुवाई में ही चार जजों ने मुख्य न्यायाधीश पर आरोप लगाया था। विपक्ष उसे आधार बनाकर मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की तैयारी कर रहा है। इस बीच जस्टिस चेलमेश्वर का नया पत्र मुद्दे को और गरमा सकता है। 21 मार्च को भेजे गए पांच पेज के पत्र में जस्टिस ने चेलमेश्वर ने कानून मंत्रालय की चिट्ठी पर कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दिनेश महेश्वरी के जिला जज कृष्ण भट्ट के खिलाफ जांच शुरू करने पर सवाल उठाया है।

 कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कोलीजियम जस्टिस भट्ट को हाईकोर्ट प्रोन्नत करने की सरकार से सिफारिश कर चुकी थी। सरकार भट्ट के नाम की सिफारिश को दबा कर बैठ गई और उसने सुप्रीम कोर्ट की प्रोन्नति की सिफारिश का पुन: आंकलन करने के लिए कनार्टक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को सीधे पत्र लिख दिया और उस पर मुख्य न्यायाधीश दिनेश महेश्वरी ने कार्रवाई की। जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा ‘हम सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर आरोप लगते हैं कि हमने कार्यपालिका के सामने अपनी संस्थागत स्वायत्तता और गरिमा खो दी है। लेकिन बंगलूरू से किसी ने हमें रसातल में जाने की दौड़ में हरा दिया है। कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हमारी पीठ पीछे सरकार के आदेश पर काम करने के बहुत इच्छुक हैं।’पत्र में कहा गया है कि जिला जज पी. कृष्णा भट्ट को जांच में निर्दोष पाये जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट कोलीजियम ने उन्हें हाईकोर्ट प्रोन्नत किये जाने की सरकार से सिफारिश की थी। लेकिन सरकार ने चुन के उनकी प्रोन्नति की सिफारिश दबा ली और बाकी अन्य पांच जो कि जज भट्ट से जूनियर थे, को प्रोन्नत कर दिया। सरकार को अगर जज भट्ट के नाम पर कोई आपत्ति थी तो वो कोलीजियम को दोबारा विचार के लिए वापस भेज सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, बल्कि सरकार सिफारिश को दबा कर बैठ गई। जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा है कि कई बार का अनुभव है कि सरकार कोलीजियम की सिफारिश अपवाद के तौर पर स्वीकार करती है और ज्यादातर दबा कर बैठ जाती है। जो जज काबिल होते हैं, लेकिन सरकार को असुविधाजनक लगते हैं इस प्रक्रिया में छूट जाते हैं।