ख़बरें अभी तक || (नासिर कुरैशी): कभी ब्राह्मणवाद की मुखालफत करने वालीं बसपा अब ब्राह्मणों की मुहब्बत की बात कहते हुए, उनके उत्पीड़न की बात कहते हुए चिंता जाहिर कर रही है। 2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बसपा सुप्रीमों मायावती ने ब्राह्मण कार्ड खेला है। लखनऊ में मायावती ने ऐलान किया कि अब बीएसपी 23 जुलाई से श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलन का आगाज़ करने जा रही है।
दरअसल यूपी विधानसभा चुनाव 2007 में बहुजन समाज पार्टी ने सोशल इंजीनियरिंग जैसी शब्दावली का इस्तेमाल किया और इस रणनीति ने विरोधियों के पैर उखाड़ दिए। 2007 के चुनाव में उत्तर प्रदेश की जनता ने करीब 16 साल बाद प्रदेश में किसी एक पार्टी को सरकार बनाने का बहुमत दिया था। 1984 में बीएसपी की स्थापना के बाद पहली बार अपने दम पर मायावती बीएसपी को सत्ता के शिखर पर पहुंचाने में कामयाब हुई।
इस चुनाव में बीएसपी ने 403 सीटों में से 206 सीट जीतकर पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। जहां एक वक्त में बीएसपी ने तिलक, तराजू और तलवार जैसे वारे दिए थे, वहीं 2007 के चुनाव में मायावती ने सोशल इंजीनियंरिग के तहत व्यापक बदलाव करते हुए, हाथी नहीं गणेश है, बह्मा, विष्णु, महेश है, जैसे नारे दिए और इन नारों ने सवर्ण समाज के मन में भरोसा बढ़ाने का प्रयास किया।
एक वक्त में जहां बीएसपी के नेता और कार्यकर्ता ब्राह्मणों के खिलाफ बोलते थे, लेकिन मायावती ने अपने सियासी गुरु कांशीराम की रणनीति को ही बदल दिया। इसका नतीजा ये हुआ है कि दलित, मुस्लिम,ब्राह्मण वोट के गठजोड़ ने तकरीबन 30 प्रतिशत वोट बीएसपी के हिस्से में आए और मायावती चोथी बार यूपी की मुख्यमंत्री बनीं। 2007 के समीकरण देखते हुए मायावती एक बार फिर ब्राह्मणों को तरजीह दे रही हैं।
विकास और जनता के मुद्दों पर बात होते होते, देश के कई राज्यों में चुनाव जाति और धर्म पर आधारित हो जाते हैं। अब देखना होगा कि यूपी चुनाव से पहले मायावती का ब्राह्मण प्रेम ब्राह्मण वोटर्स को उनके करीब करेगा। 2007 में हिट होने वाला सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला, क्या 2022 में कामयाब हो पाएगा।