हरियाणा में सियासत का नया ट्रेंड किस हद तक होगा सफल, सियासी इतिहास में है यह पहला मौका

खबरें अभी तक। राष्ट्रीय राजनीति को दिशा दिखाते रहे हरियाणा में सियासत का नया ट्रेंड शुरू हो गया है। प्रदेश के इतिहास में पहला मौका है जब किसी सियासी दल के कार्यक्रम के विरोध में तमाम विपक्षी दल मुखालफत पर उतर आए।

जींद में 15 फरवरी को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के दौरे का जिस तरह विरोध हो रहा है उससे सियासी दिग्गज लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए इसे खतरा मान रहे हैं। जाटों के लिए आरक्षण मांग रही जाट आरक्षण संघर्ष समिति जहां समानांतर रैली करने पर तुली है, वहीं कांग्रेस और इनेलो के हजारों कार्यकर्ता जींद पहुंचकर शाह को काले झंडे दिखा विरोध दर्ज कराने की रणनीति बनाने में लगे हैं। चौतरफा हमलों से घिरी भाजपा की कोशिश है कि मामला बातचीत से सुलझ जाए। इसके लिए संगठन पदाधिकारी विपक्षी दलों के साथ ही जाटों से भावनात्मक अपील करने में लगे हैं।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला ने कहा कि इतिहास गवाह है कि जाट समुदाय सहित अन्य किसी संगठन ने कभी दूसरे संगठन के कार्यक्रमों में खलल नहीं डाला। बेशक रैली न होने देने के लिए विपक्षी दलों के नेता और समिति पदाधिकारी बयानबाजी कर रहे हैं, लेकिन उम्मीद है कि बातचीत से ही समस्या का समाधान निकल जाएगा। संगठनों द्वारा किसी भी संगठन के कार्यक्रम में खलल डालने की गलत परंपरा का कोई समर्थन नहीं कर सकता।

भाजपा नेता प्रकाश खटकड़ा ने कहा कि लोकतंत्र में पहली बार शर्मनाक नजारा देखने और सुनने को मिल रहा है कि किसी पार्टी को घोषित तौर पर रैली करने से रोकने की धमकी दी जा रही है। यह प्रजातांत्रिक मूल्यों के बुनियादी अधिकारों के खिलाफ है। यह गलत परंपरा अगर पड़ गई तो समझो लोकतंत्र लहूलुहान हो जाएगा। देश की 68 फीसद आबादी पर शासन करने वाली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को अपनी बात रखने से कोई भला कैसे रोक सकता है।

इसी तरह भाजपा के पिछड़ा मोर्चा के प्रदेश महासचिव शंकर धूपड़ ने ऐसी हरकतों को समाज की एकता और अखंडता के लिए खतरा बताया। प्रतीकात्मक विरोध कोई नई बात नहीं पर रैली या जलसा करने से रोकने का अधिकार संविधान में किसी को नहीं दिया गया है। हमें इस तरह के विरोध का भविष्य में निकलने वाले परिणामों का भी आकलन करना चाहिए।