चूड़धार में 6 फूट बर्फ पड़ी है फिर भी नियमित रूप से हो रही शिरगुल महाराज की पूजा

ख़बरें अभी तक। सिरमौर व शिमला जिले की सीमा पर चूड़धार पर्वत पर समुद्र तल से लगभग 12 हजार फूट ऊंचाई पर शिरगुल महाराज का मंदिर है। चूड़धार को लेकर सिरमौर ,चौपाल ,शिमला, सोलन उत्तराखंड के कुछ सीमावर्ती इलाकों के लोग धार्मिक आस्था रखते हैं। चूड़धार को श्री शिरगुल महाराज तपोस्थली माना जाता है। यहां शिरगुल महाराज का मंदिर भी स्थित है। शिरगुल महाराज सिरमौर और शिमला व सोलन के देवता हैं।

चूड़धार तक पहुंचने के दो रास्ते हैं। मुख्य रास्ता सिरमौर जिले के हरिपूरधार व नौहराधार से जाता है तथा यहां से चूड़धार पहुंचने के लिए 18 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। दूसरा रास्ता शिमला जिले के पुलबाहल तथा सरांहा से है यहां से चूड़धार 12 किलोमीटर है। मान्यता है कि एक बार चूरू नाम का शिव भक्त, अपने पुत्र के साथ इस मंदिर में दर्शन के लिए आया था। इस दौरान अचानक बड़े-बड़े पत्थरों से बड़ा सांप बाहर आ गया और चूरु और उसके बेटे को मारने के लिए दौड़ा।

दोनों ने प्राणों की रक्षा के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की, माना जाता है कि भगवान शिव के चमत्कार से विशालकाय पत्थरों का एक हिस्सा सांप पर जा गिरा और सांप मर गया। उसके बाद से ही यहां का नाम चूड़धार पड़ा। एक बहुत बड़ी चट्टान को चूरु का पत्थर भी कहा जाता है। कहा यह भी जाता है कि चूड़धार पर्वत के साथ लगते क्षेत्र मे हनुमान जी को संजीवनी बूटी मिली थी। चूड़धार मे भारी हिमपात को देखते हुये प्रशासन द्वारा यहां यात्रा पर रोक लगा दी है और इस समय चूड़धार में लगभग 6 फूट बर्फ है और यहां शिरगुल महाराज की पूजा फिर भी नियमित रूप से हो रही है।

चूड़धार में स्वामी कमलानंद जी महाराज पूजा कर रहे है उनके साथ उनका एक सेवक भी है अब चूड़धार लोगों का आना जाना अप्रैल 2020 में ही हो पाएगा क्यूंकि यहां अभी तक चार बार हिमपात हो चुका है और अभी सर्दी के मौसम की शुरूआत है और अभी चूड़धार में कई बार हिमपात होगा और सर्दी के अंत तक चूड़धार में लगभग 10/15 फूट हिमपात जमा हो जाएगा।