शक्तिनगर स्थित मां म मंदिर में दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की उमडी भीड़

खबरें अभी तक। सोनभद्र जनपद के दक्षिणी छोर पर स्थित शक्तिनगर में ज्वाला देवी के मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी । नवरात्री प्रारंभ होते ही मंदिरों को अच्छी तरह से सजाया गया सुबह 4:00 बजे भोर से ही मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं और घंटे घड़ियाल के ध्वनि सुनाई देने लगती है ,और चारों तरफ भक्ति में संगीत बजने लगता है । शक्तिनगर में स्थित मां ज्वालामुखी देवी शक्तिपीठ में शारदीय नवरात्र पर दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए विशेष तैयारी की गई है।

मंदिर के पुजारी परिवार द्वारा साफ-सफाई कर जहां मंदिर परिसर को आकर्षक ढंग से सजाया गयाहै। वहीं दूरदराज से आने वाले दर्शनार्थियों के रूकने तथा खाने आदि की सुविधा प्रदान की जा रही है। नवरात्र में मंदिर परिसर के ¨सह द्वार के अंदर व बाहर माला-फूल सहित पूजा के सामानों की दुकानें लगी हैं। नवरात्र में यहां बाहर से आने वाले दर्शनार्थी मंदिर परिसर में अपनी मनौती के पूरी होने पर पुराने बांधे गए नारियल को खोलते हैं और नई मन्नत मांग कर पुन: नारियल बांधते हैं। यहां आने वाले दर्शनार्थी अखंड ज्योति का दर्शन करना नहीं भूलते हैं।

ज्वालामुखी मंदिर पर ट्रेन व बस से पहुंचना बहुत आसान है। वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पीडब्ल्यूडी मोड़ से चंद कदमों की दूरी प मंदिर स्थित है। श्रद्धालुओं को मंदिर पर आने के लिए ट्रेन व बस सेवा उपलब्ध है। शक्तिनगर रेलवे स्टेशन से मंदिर लगभग डेढ़ किमी दूरी पर स्थित है। वाराणसी एवं मध्य प्रदेश की ओर से मंदिर आने के लिए बस का साधन उपलब्ध है।

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड व बिहार प्रदेशों की सीमा पर स्थित मां ज्वालामुखी मंदिर रिहंद जलाशय में समाहित  गहरवार राजा उदित नारायण के राज घराने की कुल देवी के रूप में उनके  द्वारा स्थापित की गई थीं। राजा का किले का कुछ भाग जलाशय में डूब गया है। मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में रह रहे इस राजघराने के लोग आज भी मां ज्वालामुखी को कुल देवी के रूप में पूजते हैं।

मां ज्वाला देवी के गर्भगृह में मंदिर के पीछे स्थित नीम के पेड़ का स्थापना काल से ही नाता रहा है। जब मंदिर नहीं बना था तब बहुत वर्षों तक मां का निवास नीम के पेड़ में ही था। धर्मशास्त्र भी बताते हैं कि नीम के पेड़ में ही मां का निवास रहता है, इसलिए जब दर्शनार्थी मां का दर्शन-पूजन करने जाते हैं तब नीम के पेड़ पर मत्था जरूर टेकते हैं। नीम के पेड़ की पूजा के बाद ही मां की पूजा पूर्ण मानी जाती है। नीम का पेड़ वर्ष भर फ -फुल से हरा भरा रहता है।

मंदिर आधुनिक वास्तुकला से निर्मित है। मंदिर के आस-पास स्थित कोल परियोजनाओं में प्रतिदिन ब्लास्टिंग होने से धरती हिल जाती है। इसके बाद भी मंदिर परिसर यथावत कायम है। नीम का पेड़ भी मंदिर के गर्भगृह के साथ होने के बाद भी मंदिर की सतह में कभी दरार नहीं आयी। मंदिर में कई तहखाने हैं। एक तहखाने में अखण्ड ज्योति निरंतर जल रही है। मंदिर का सह द्वार आधुनिक है, तथा उत्तर का द्वार अति प्राचीन है। मंदिर परिसर में स्थित कई छोटे-छोटे मंदिरों में देवी-देवताओं की मूर्तियां भी विराजमान है।