इमरजेंसी के दौरान 19 महीने जेल में रहे अरुण जेटली

खबरें अभी तक। 9 अगस्त को अचानक तबीयत बिगड़ जाने के कारण अरुण जेटली को दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया. तबीयत ज्यादा खराब होने के कारण 18 अगस्त से उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था. आज यानी शनिवार 24 अगस्त को 12 बजकर 7 मिनट पर अरुण जेटली ने एम्स में अंतिम सांस ली. पूर्व वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री रह चुके अरुण जेटली के निधन पर आज पूरा देश शोकगुल है. सत्ता पक्ष हो या विपक्ष हर किसी ने अरुण जेटली के निधन पर दुख जताया.  बेहद खास रहा है अरुण जेटली का राजनीतिक सफर. किसी से कोई बैर नहीं, स्वाभाव भी अच्छा था. हर किसी से जल्दी घुल मिल जाते थे. नेता विपक्ष से लेकर, केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में उनकी भूमिका रही और एनडीए सरकार में पीएम नरेंद्र मोदी के प्रमुख सलाहकारों में से एक रहे. जेटली एक प्रभावशाली नेता थे. लेकिन वो कहते हैं न कि अच्छे लोगों की भगवान को भी जरूरत होती है.

कैसा रहा राजनीतिक सफर-

28 दिसंबर 1952 को अरुण जेटली का जन्म हुआ था. इनके पिता पेशे से एक वकील थे. अरुण जेटली ने अपनी विद्यालयी शिक्षा सेंट जेवियर्स स्कूल जो की  नई दिल्ली में है वहां से पूरी की. उन्होंने 1973 में नई दिल्ली में कॉमर्स में ग्रेजुएशन की. इसके बाद आया 1974 का दौर. साल 1974 में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में चुने गए. 1975 में लगी एमेरजेंसी के दौरान सभी कांग्रेस विरोधियों को जेल में डाला गया. और अरुण जेटली को भी जेल जाना पड़ा. 19 महीने तक अरुण जेटली जेल में रहे. बाहर निकलने के बाद जनता पार्टी ज्वाइन कर ली.  वकालत की पढ़ाई की. वकील बने लेकिन राजनीतिक संबंध बनाए रखे. सुप्रीम कोर्ट के चर्चित वकीलों में गिने जाते थे अरुण जेटली. 37 साल की उम्र में वी. पी सिंह की सरकार में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बन गए. बोफोर्स के कागजाद उन्हीं के हाथों से गुजरे थे. दरअसल  साल 1949 में ये बात सामने आयी थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डालर की दलाली चुकायी थी. उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी. जिसके प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. स्वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया था. इसे ही बोफोर्स घोटाला या बोफोर्स काण्ड के नाम से जाना जाता हैं.

90 के दशक से शुरू राजनीतिक सफर

90 के दशक से ही अरुण जेटली बीजेपी की सीढ़ी चढ़ना शुरू कर चुके थे. 1999 में वाजपेयी की सरकार में उन्हें सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार का पद मिला. 23 जुलाई को अरुण जेटली ने कानून न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला. नवंबर 2000 में उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया. मई 2004 में NDA की हार के बाद ये बीजेपी के महासचिव बनाए गए. 3 जून 2009 को लाल कृष्ण आडवाणी ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में अरुण जेटली को चुना. 16 जून 2009 को उन्होंने अपनी पार्टी के वन मैन वन पोस्ट सिद्धांत के अनुसार भाजपा के महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया. साल 2014 में पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी चुनाव जीती और अरुण जेटली को 26 जुलाई 2014 को वित्त मंत्री बनाया गया. हालांकि कुछ महीनों के लिए अरुण जेटली रक्षा मंत्री का पद भी संभाल चुके हैं. ये मई 2014 से नवंबर 2014 तक रक्षा मंत्री रहे और साल 2019 में उन्होंने वित्त मंत्री के पद से भी इस्तीफा दे दिया.

पत्र लिखकर जिम्मेदारी लेने से किया इंकार

साल 2019 में एक बार फिर पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने चुनाव जीता और सत्ता हासिल की. लेकिन अरुण जेटली को कोई पद मिलता इससे पहले ही उन्होंने पीएम मोदी को पत्र लिखा और कहा कि ‘पांच साल तक आपकी पार्टी में रहना मेरे लिए सम्मान की बात थी पार्टी ने मुझे कई जिम्मेदारियां दीं. इससे ज्यादा मैं और कुछ नहीं मांगना चाहता. पिछले 18 महीनों से मैं गंभीर बिमारी से जूझ रहा हूं. इस चिट्ठी के माध्यम से मैं आपसे औपचारिक अनुरोध करता हूं कि मुझे नई सरकार में कोई जिम्मेदारी न दी जाए’. शपथ ग्रहण के एक दिन पहले अरुण जेटली ने ये चिट्ठी नरेंद्र मोदी को लिखी. उनका कहना था कि अब वो अपनी सेहत पर ध्यान देना चाहते हैं. ऐसे में उनसे कोई जिम्मेदारी नहीं संभाली जाएगी. अरुण जेटली के इस पत्र के बाद उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई और आज 24 अगस्त को उनके चले जाने से देश में एक पद हमेशा के लिए खाली हो गया है.