हरियाणा का ऐसा हलका जिसे पार्टियां नहीं है पसंद, 1991 से अब तक बनते आये निर्दलीय विधायक

गौरव सागवाल। ख़बरें अभी तक।

हरियाणा की राजनीति के मौजूदा हालात को अगर देखा जाए तो आज कई दल टूट रहे है तो कई दल नए बन रहे है. कुछ दलों के विधायक दूसरे दलों में जमीन तलाश रहे है तो कुछ अपने दल में ही नया दल बना के वहां सेट हो रहे है.

2014 में जहाँ भाजपा हरियाणा में जगह बना पाई तो वही मुख्य विपक्षी दल आज मात्र एक दल की पार्टी बनकर रह गयी. 2014 का लोकसभा और हरियाणा विधानसभा मोदी लहर के लिए जाना जाएगा. ये लहर लोकसभा में 2019 में भी कायम रही लेकिन फिलहाल हरियाणा में देखना बाकी है.

मगर इन सबके अंदर हरियाणा की एक ऐसी विधानसभा सीट भी है जो आपने आप में किसी हॉट सीट या कहे कि टक्कर की सीट मानी जाती है.

पूंडरी.

हरियाणा का विधान सभा चुनाव हो और इस सीट का जिक्र ना हो तो सब अधूरा सा लगता है. इस हलके को ज्यादातर आज़ाद उम्मीदवार ही पसंद आते है. बीते 24 सालों से यहां आज़ाद उम्मीदवार ही चुनकर चंडीगढ़ में बैठता नजर आता हैं. आखरी बार इस सीट से चौधरी ईश्वर सिंह पूर्व विधानसभा स्पीकर ही टिकट से चुनकर आये थे. 1991 के चुनाव में ईश्वर सिंह कांग्रेस पार्टी से लड़े ओर 22660 वोट हासिल किये थे. जबकि दूसरे नंबर पर जनता पार्टी से गांव कौल के चौधरी मखन सिंह 14476 वोट पाकर दूसरे नम्बर पर रहे थे. उस समय पाई भी अलग विधानसभा सीट हुआ करती थी(आज पूंडरी में ही शामिल है)

इसके बाद से ही पूंडरी ने पार्टियों को ना कहना शुरू कर दिया था. 1996 के हुए जनरल इलेक्शन में जहां नरेन्द्र शर्मा ने कांग्रेस की टिकट से आये चौधरी ईश्वर सिंह को 1231 से हराया था जिसमे आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर पबनावा गाँव के नरेंद्र शर्मा को 21545 वोट तो पूर्व स्पीकर ईश्वर सिंह को 20311 वोट मिले थे.

इसी कड़ी में सन 2000 के आम चुनाव में चौधरी ईश्वर सिंह के बेटे तेजवीर सिंह भी आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर मैदान में आये और 21559 वोट हासिल की तो रनर अप के तौर पर नरेंद्र शर्मा रहे जिन्हें 19790 वोट हासिल हुई. तब से सभी दल और सभी उम्मीदवारों को ये आभास हो चुका था कि ये हलका टिकट के उम्मीदवार को नकारता है.

ऐसी ही स्थिति 2005 और 2009 में भी हुई जहां फतेहपुर के रहने वाले दिनेश कौशिक को 33024 तो नरेंद्र शर्मा को 24998 वोट मिली थी जिमसें दिनेश कौशिक 8026 वोटों से आज़ाद उम्मीदवार जीत हासिल की थी. वही 2009 में इस हलके ने सुल्तान सिंह जडोला को आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर जीता के चंडीगढ़ भेजा. उनको उस समय 38929 वोट मिली थी जबकि कौशिक को 34878 वोट मिली थी।

2014 जहाँ देश मे मोदी लहर थी और इस मोदी लहर में भाजपा अकेले अपने दम पर हरियाणा में सरकार बनाने की हालत में आ गई थी वही इस सीट पर इस लहर का कोई फायदा नही हुआ.

2014 की भयंकर लहर में भी पूंडरी के लोगों ने आज़ाद उम्मीदवार को विधानसभा में भेज दिया। यहां दिनेश कौशिक को 38312 वोट मिली तो भाजपा के रणधीर सिंह गोलन को यहां से 33480 वोट मिली थी.

जातीय समीकरण की बात करे तो यह सीट रोड बिरादरी की बहुल सीट है लेकिन यहां से सबसे ज्यादा विधायक रोड के अलावा ब्राह्मण भी बने है. तीन बार निर्दलीय ओर 1 बार कांग्रेस की टिकट से चुनाव लड़ने वाले कौशिक 2 बार निर्दलीय ही जीते है. इस सीट पर सबसे ज्यादा बार पूर्व स्पीकर ईश्वर सिंह विधायक रहे है.

ईश्वर सिंह यहां से 1968, 72, 82, 91 में विधायक रहे है. इतिहास को देखते हुए इस सीट पर निर्दलीय चुनाव जीतने का आलम यह रहा है की कोई भी उम्मीदवार यहां पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ना पसन्द नही करता है. इसका जीता जागता उदहारण 2014 में बलकार सिंह है.

बलकार सिंह यहां से बतौर हजकां की टिकट पर चुनाव लड़ने आये थे मगर एन मौके पर वे आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर मैदान में कूद पड़े और कुलदीप बिश्नोई को उनकी जगह प्रदीप कलतगड़िया को मैदान में उतरना पड़ा. हालांकि बलकार भी यहां से मात्र 7000 के आसपास ही वोट हासिल कर पाए. निर्दलीयों के लिए पूंडरी कितनी सेफ सीट है आप इस बात का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते है कि 2014 में सबसे ज्यादा वोट पाने वाले टॉप के 6 उम्मीदवारों में से 4 निर्दलीय थे.

बात करते है 2019 की.

2019 की राह भी लगता है पार्टी उम्मीदवार के लिए आसान नही रहने वाली है. जहाँ भाजपा में टिकट की राह बहोत मुश्किल हो चली है. भाजपा में 2019 के लिए बड़ा चेहरा रणधीर गोलन ही थे लेकिन मौजूदा विधायक दिनेश कौशिक के भाजपा में जाने से ये राह बेहद कठिन हो गईं है.

वहीं इनेलो से टूट के बाद पूर्व विधायक और देवीलाल के साथ जनता दल में रह चुके पूर्व विधायक मखन सिंह अजय चौटाला की पार्टी जजपा में अपने बेटे रणदीप कौल के साथ चले गए है वहीं जजपा में भी टिकट की मारामारी हो सकती है. एक तरफ पार्टी कैडर के साथ जुड़े रहे मख्खन सिंह और उनके बेटे युवा नेता रणदीप कौल है वहीं पाई से युवा नेता राजू ढुल पाई भी कतार में है. दोनों दुष्यंत को अपना नेता मानते है.

कांग्रेस के हाल यहां भी वैसे ही है जैसे ओर पार्टियों के. एक तरफ हुड्डा सरकार में CPS रहे सुल्तान जडौला है तो दूसरी तरफ इनेलो को BYE BYE कह चुके पूर्व स्पीकर के बेटे व पूर्व विधायक तेजवीर है जिन्होंने अशोक तंवर की अगुवाई में पार्टी जॉइन की थी. वहीं 2014 में अपने पहले ही चुनाव में धमाकेदार बतौर आज़ाद उम्मीदवार एंट्री करने वाले सतबीर भाणा ने भी रणदीप सुरजेवाला के साथ रैली कर दम खम दिखा दिया.

2014 में पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले रवि मेहला भी कतार में है.

इनेलो के लिए यहां लिखने जैसा कुछ नही है. फिलहाल नजर दौड़ाई जाए तो इनेलो का कुनबा यहां खाली है.

इसके अलावा बतौर आज़ाद उम्मीदवार यहां हर प्लान की तरह कई नेता टकटकी लगाए बैठे है. जिनमे सज्जन सिंह ढुल जो पहले इनेलो फिर भाजपा की राजनीति करते आ रहै है उन्होंने अपने पत्ते अभी तक नहीं खोले है। उनके अलावा नरेंद्र शर्मा, करोड़ा, जैसे नेता कतार में है।

सबसे दिलचस्प देखना अबकी बार यह होगा कि भाजपा यहां से एक बार फिर गोलन पर अपना विश्वास दिखाती है या जातीय समीकरण को साधते हुए दिनेश पर दांव लगाती है. वही लोकदल की टिकट का दावेंदार कौन होता है. बहरहाल यह तो भविष्य के गर्भ में है.

कुल मिलाकर हरियाणा में पूंडरी का चुनाव अपने आप मे एक बेहतरीन चुनाव होता है जहां उम्मीदवार दल के लिए नही नीर-दल होने के लिए लड़ते है.