यहां हर बारह साल बाद शिवलिंग पर भयंकर आकाशीय बिजली गिरती है

ख़बरें अभी तक। सावन महीने के अवसर पर बिजली महादेव प्रांगण में हजारों की तादाद में श्रद्धालुओं का तांता लग रहा है। मंदिर में भोले के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी रही है। वहीं, साथ ही जगह-जगह भक्तों की टोलियां भजन कीर्तन करती हुई नजर आती रही। वहीं, युवा मंडल की तरफ से बिजली महादेव के दर्शन करने आए श्रद्धालुओं के लिए भंडारे का भी आयोजन किया गया। वहीं, पर्यावरण को बिकते हुए डिस्पोजेबल गिलास प्लेटो की जगह स्टील के बर्तनों में भक्तों को भगवान का प्रसाद बांटा गया।

जिसके चलते पर्यावरण संरक्षण की भी एक नई मुहिम शुरू की गई। आपको बता दें कि सावन माह के अवसर पर कुल्लू जिला के बिजली महादेव मंदिर में रोजाना श्रद्धालु माथा टेकने जा रहे हैं। कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है। कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है। इस सांप का वध भगवान शिव ने किया था। जिस स्थान पर मंदिर स्थापित किया गया है। मन्दिर के भीतर स्थापित शिवलिंग पर हर बारह साल बाद भयंकर आकाशीय बिजली गिरती है। बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है।

यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं। कुछ ही माह बाद शिवलिंग एक ठोस रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। आकाशीय बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन धन को इससे नुकसान पहुंचे। भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं। इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है। सावन के महीने में यहां मेला-सा लगा रहता है। कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग सात किलोमीटर है। शिवरात्रि पर भी यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

यह जगह समुद्र स्तर 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। शीत काल में यहां भारी बर्फबारी होती है। कुल्लू में भी महादेव प्रिय देवता हैं। कहीं वे सयाली महादेव हैं तो कहीं ब्राणी महादेव। कहीं वे जुवाणी महादेव हैं तो कहीं बिजली महादेव। बिजली महादेव का अपना ही महात्म्य व इतिहास है। ऐसा लगता है कि बिजली महादेव के इर्द-गिर्द समूचा कुल्लू का इतिहास घूमता है और हर मौसम में दूर-दूर से लोग बिजली महादेव के दर्शन करने आते हैं।

सावन माह के अवसर पर विभिन्न युवक मंडलो द्वारा यहां भंडारे का आयोजन किया जाता है। इस बार भी भंडारे का आयोजन भक्तों के लिए किया गया और पर्यावरण को देखते हुए भंडारा डिस्पोजल गिलास प्लेट की जगह स्टील के बर्तन में परोसा गया जो पर्यावरण सरंक्षण के लिए एक अनूठी पहल है। आपको बता दें कि पहले के भंडारे के दौरान डिस्पोजल प्लेटो और गिलास की वजह से जगह जहग कूड़ा फेल जाता था। जिसके चलते इस बार एक अनूठी पहल स्वछता के लिए की जा रही है।

मंडी से आई कमला शर्मा का कहना है कि सावन के महीने के दौरान भोलेनाथ के दर्शन करने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त हुआ है साला कि वह यहां पहले भी आ चुके हैं और बार बार यहां आने का मन होता है और उनका कहना है कि भोले के दरबार में मेले की तरह भीड़ जुटी हुई है यहां पर आकर उनके मन को काफी शांति मिलती है और उनकी भगवान से यही प्रार्थना है कि वह सब की मनोकामना पूर्ण करें

वहीं, कुल्लू से आए सुमित का कहना है कि वह लगभग 40 सालों से यहां आ रही हैं और बिजली महादेव का इतिहास है कि जहां हर 3 साल बाद बिजली गिरती है और उसके बाद गांव के लोग आकर मक्खन से शिवलिंग को फिर से जोड़ते हैं जिसका पुजारी को सुकून होता है और मंदिर के कपाट फिर से खुल जाते हैं

वहीं, देवी सिंह का कहना है कि वह लगभग 15 सालों से हर साल सावन के महीने में भोलेनाथ के दर्शनों के लिए आते हैं और इस साल भीड़ इतनी अधिक है, बावजूद उसके भी युवा मंडलों द्वारा जगह-जगह लगाए गए भंडारे लोगों को काफी सुकून पहुंचा रहे हैं और यहां आने वाले भक्तों को किसी भी तरह की कमी नहीं आ रही है

युवा मंडल के सदस्य दीपांशु का कहना है कि लगभग 10 सालों से यहां पर भंडारा दिया जा रहा है और आगे भी भोले के दर पर आने वाले भक्तों के लिए भंडारे का ऐसे ही आयोजन किया जाता रहेगा ताकि भोले के दरबार में आने वाले किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरह की परेशानी ना हो।