हरियाणा के नौजवानों ने भी कारगिल युद्ध के दौरान दिया था अपना बलिदान

ख़बरें अभी तक। कारगिल विजय दिवस को 20 साल पूरे हो गए हैं। हर वर्ष करगिल विजय दिवस 26 जुलाई को मनाया जाता है। हरियाणा के नौजवानों ने भी कारगिल युद्ध के दौरान अपना बलिदान दिया था। सिरसा के गांव तरकांवाली के सिपाही कृष्ण कुमार ने भी देश के खातिर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। गांव तरकांवाली के जयसिंह बांदर का 25 वर्षीय पुत्र कृष्ण कुमार कारगिल युद्ध के समय जाट रैजिमेंट में सिपाही के पद पर तैनात था। कृषक जय सिंह के चार पुत्रों में सबसे छोटा कृष्ण ही था। शुरू से ही उसमे देश सेवा का जज्बा था। परम्परागत कृषि कार्य को छोड़कर उसने फौज में जाने का फैसला लिया।

इस नौजवान ने देश सेवा के लिए सेना को चुना और शहादत से करीब दो वर्ष पूर्व ही जाट रैजिमेंट में भर्ती हुआ। पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कारगिल की जमीन पर कब्जा करने की हिमाकत की तो भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया था। युद्ध में कृष्ण कुमार जैसे अनेक वीरों ने शहादत दी थी। शहीद कृष्ण कुमार की शहादत को सम्मान देते हुए तत्कालीन सरकार ने अनेक वायदे और घोषणाएं की थीं। विशेष रूप से गांव में स्थित राजकीय मिडल स्कूल का नाम शहीद कृष्ण के नाम पर करने और उसे अपग्रेड करने का वायदा किया गया था। इसके अलावा कृष्ण के नाम पर गांव में मिनी स्टेडियम की स्थापना और उसके घर तक सड़क का निर्माण करने का वायदा किया गया था।

साथ ही शहीद की प्रतिमा गांव में लगाने की बात भी की गई थी। साल-दर-साल बीतते गए लेकिन इनमें से कोई वायदा पूरा नहीं हुआ। स्कूल का नामकरण तो कृष्ण कुमार के नाम पर कर दिया गया, लेकिन उसे 12वीं के दर्जे तक अपग्रेड नहीं किया गया। शहीदों का स्मारक युवाओं को प्रेरणा देता है। सरकार ने गांव में शहीद कृष्ण कुमार की प्रतिमा ही नहीं लगाई। परिजनों ने खुद के खर्चे पर कृष्ण कुमार की प्रतिमा लगाई और आज तक उसका रखरखाव गांव के लोग और परिजन ही कर रहे थे। हालांकि अब प्रसाशन ने उसके आसपास बाउंडरी बना दी है। इसके अलावा शहीद कृष्ण कुमार के घर तक न ही आजतक सड़क पहुंची और न ही मिनी स्टेडियम का निर्माण हो पाया। वायदे अधूरे रह गए, घोषणाएं पूरी नहीं हुईं।

हालांकि प्रशासन की ओर से सिरसा शहर में एक चौराहे का नामकरण जरूर शहीद कृष्ण कुमार के नाम पर किया गया और प्रतिमा भी लगा दी गई। घोषणाओं के पूरा होने का इंतजार करते-करते हुए शहीद कृष्ण के माता-पिता ही दुनिया से रुकस्त हो गए। शहादत का सरकारी अधिकारी या मंत्री जिक्र तक नहीं करता। शहीदी दिवस आता है तो कोई सम्मान करने भी नहीं पहुंचता। शहीद कृष्ण कुमार के परिवार नम् आंखों से अपने सपूत को याद करते हैं और साथ ही उसकी शहादत को पूरा सम्मान नहीं मिलने का भी दर्द भी बयां करते हैं।

शहीद कृष्ण कुमार की पत्नी व भतीजा भाभी विद्या देवी का कहना है कि सरकार ने कोई घोषणाएं पूरी नहीं कीं। कोई याद नहीं करता। न कोई पूछने आता है। गांव के कुछ युवा ही शहीद कृष्ण कुमार की शहादत को नमन् करते हुए शहीदी दिवस पर कार्यक्रमों का आयोजन कर देते हैं। बलजीत सिंह ने बताया कि शहीद कृष्ण कुमार को खेलों के प्रति बहुत झुकाव था , वह अपनी बटेलियन वोलिवोल टीम में थे और बहुत अच्छे प्लेर थे , और वह देश और आर्मी के प्रति बहुत जुनूनी थे।