पद्मावत: जुनून ,झक्कीपन और राजपूतों के आन बान शान की है गाथा

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कहानी– पद्मावत कहानी है जुनून और झक्कीपन की। फिल्म की शुरुआत होती है जलालुद्दीन खिलजी (रज़ा मुराद) के बैठक से। जहां वह दिल्ली की सल्तनत पर राज़ करने की योजना बना रहा होता है। तभी बैठक में एक शुतुरमुर्ग लिए आगमन होता है जलालुद्दीन के भतीजे अलाउद्दीन खिलजी (रणवीर सिंह) का। दुनिया की हर नायाब वस्तु को हासिल करने की चाह रखने वाला अलाउद्दीन अपने चाचा से उनकी बेटी महरूनिसा (अदिति राव हैदरी) का हाथ मांगता है। इधर निकाह होता है.. उधर अलाउद्दीन की दरिंदगी बढ़ती जाती है। कुछ घटनाओं के बाद वह अपने चाचा की हत्या कर सल्तनत का राजा बन जाता है।

इधर, मेवाड़ के राजा महारावल रतन सिंह (शाहिद कपूर) सिंघल देश जाते हैं। जहां की राजकुमारी पद्मिनी (दीपिका पादुकोण) से उन्हें पहली नजर में प्यार हो जाता है। कुछ दिनों के प्रेम प्रसंग के उपरांत उनकी शादी हो जाती है और महारावल पद्मावती के साथ वापस मेवाड़ आ जाते हैं। मेवाड़ में रतन सिंह के राज पुरोहित राघव चेतन को एक जुर्म में देश निकाला दे दिया जाता है। जिसके बाद अपमान का घूंट पीकर वह अलाउद्दीन खिलजी के पास पहुंच जाते हैं और उसके सामने पद्मावती के अलौकिक सौंदर्य की चर्चा करते हैं।

हर नायाब चीज़ को मुट्ठी में करने वाला अलाउद्दीन रानी पद्मावती को पाने की चाह में मेवाड़ पर हमला कर देता है। लेकिन जब युद्ध से बात नहीं बनती तो वह महारावल रतन सिंह को बंधक बना दिल्ली ले आता है। वह मेवाड़ के सामने शर्त रखता है रानी पद्मावती से एक मुलाकात के बाद ही वह राजा को रिहा करेगा।

पद्मावती को पाने की सनक उसके सिर चढ़कर बोलती है। लेकिन पद्मावती का दावा है कि अलाउद्दीन को क्षत्राणी रानी पद्मावती तो क्या.. उसकी परछाई भी नसीब नहीं होगी।

बहरहाल, फिल्म के सेकेंड हॉफ में रानी पद्मावती की राजनीतिक समझ बूझ को दिखाते हुए कहानी को आगे बढ़ाया गया है। लेकिन फिर रतन सिंह और अलाउद्दीन खिलजी के बीच युद्ध में किसकी जीत होती है.. कैसे होती है? क्या अलाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मावती की एक झलक भी मयस्सर हो पाती है? इसकी कहानी है पद्मावत।

निर्देशन-

यदि आपने संजय लीला भंसाली की पिछली फिल्में देखी हैं तो आपको कहीं ना कहीं यहां दोहराव मिलेगा। फिल्म की पटकथा को थोड़ा और कसा जा सकता था। साथ ही किरदारों के बुनावट में भी एक अधूरापन दिखता है। मलिक कफूर के किरदार में जिम सरभ प्रभावी बनते बनते रह जाते हैं। फिल्म में राजपूत आन बान शान का इतनी बार बखान किया है कि करणी सेना वाले कहीं लज्जा में जौहर ना कर लें। पद्मावत लगभग 3 घंटे लंबी फिल्म है। लेकिन हैरानी वाली है कि तीन घंटों में भी आपको किसी किरदार से जुड़ाव महसूस नहीं होगा। ना दुख, ना खुशी, ना अफसोस, ना प्यार.. फिल्म देखकर इनमें से कोई भी भाव टिककर नहीं आ पाता। फिल्म का फर्स्ट हॉफ कुछ दूरी तक तेजी से आगे बढ़ता है, लेकिन फिर थोड़ी सी स्थिरता आ जाती है। जहां से फिल्म को कुछ मिनट कम किया जा सकता था। सेकेंड हॉफ असरदार है। फिल्म में रणभूमि के सीन जिस धमक के साथ दिखाए गए हैं, वह अद्भुत है। खासकर फिल्म के क्लाईमैक्स को शानदार तरीके से दिखाया गया है। जब मेवाड़ की सभी औरतें रानी पद्मावती समेत जौहर करने की प्रक्रिया कर रही होती हैं तो आप दिल थाम लेते हैं। यहां बैकग्राउंड स्कोर इतना असरदार है, जैसे आपको आगे होने वाली अनहोनी की संकेत दे रहा हो।

अदाकारी-

फिल्म में हर मुख्य किरदार को अपना अपना समय दिया गया है, जहां वे अपने अभिनय का जौहर दिखा सकते हैं। रानी पद्मावती के किरदार में दीपिका पादुकोण सशक्त लगी हैं। पूरी फिल्म में पद्मावती की खूबसूरती का बखान है और दीपिका अपने चेहरे से ही नहीं.. बल्कि चाल ढ़ाल से भी वह दिखाने में सफल रही हैं। वहीं, शालीन लेकिन कठोर राजा महारावल रतन सिंह के किरदार में शाहिद कपूर भी अच्छी कोशिश करते दिखे हैं। लेकिन पूरी फिल्म जिसके इर्द गिर्द घूमती है.. वह है अलाउद्दीन खिलजी। रणवीर सिंह ने इस किरदार को जीवंत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन कहीं कहीं उन्हें अपने डॉयलोग्स पर थोड़ी और मजबूती लानी चाहिए थी। रज़ा मुराद, अदिति राव हैदरी, जिम सरभ और अनुप्रिया गोयनका अपने अपने किरदारों में प्रभावी हैं। नीरजा और राबता के बाद जिम सरभ को मलिक कफूर के किरदार में देखना अच्छा लगा। निर्देशक ने उन्हें हाव भाव से खेलने का खूब मौका दिया। बाकी के सपोर्टिंग किरदार भी अपने काम में बेहतरीन रहे हैं।

अदाकारी फिल्म में हर मुख्य किरदार को अपना अपना समय दिया गया है, जहां वे अपने अभिनय का जौहर दिखा सकते हैं। रानी पद्मावती के किरदार में दीपिका पादुकोण सशक्त लगी हैं। पूरी फिल्म में पद्मावती की खूबसूरती का बखान है और दीपिका अपने चेहरे से ही नहीं.. बल्कि चाल ढ़ाल से भी वह दिखाने में सफल रही हैं। वहीं, शालीन लेकिन कठोर राजा महारावल रतन सिंह के किरदार में शाहिद कपूर भी अच्छी कोशिश करते दिखे हैं। लेकिन पूरी फिल्म जिसके इर्द गिर्द घूमती है.. वह है अलाउद्दीन खिलजी। रणवीर सिंह ने इस किरदार को जीवंत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन कहीं कहीं उन्हें अपने डॉयलोग्स पर थोड़ी और मजबूती लानी चाहिए थी। रज़ा मुराद, अदिति राव हैदरी, जिम सरभ और अनुप्रिया गोयनका अपने अपने किरदारों में प्रभावी हैं। नीरजा और राबता के बाद जिम सरभ को मलिक कफूर के किरदार में देखना अच्छा लगा। निर्देशक ने उन्हें हाव भाव से खेलने का खूब मौका दिया। बाकी के सपोर्टिंग किरदार भी अपने काम में बेहतरीन रहे हैं।

 

संगीत

फिल्म का संगीत दिया है संजय लीला भंसाली ने ही। देवदास हो या बाजीराव या रामलीला.. संजय लीला भंसाली के फिल्मों की जान होती है संगीत। लेकिन पद्मावत की संगीत यादगार नहीं है। ‘घूमर’ तो फिल्म रिलीज से पहले ही बच्चे बच्चे की जुबां पर चढ़ चुका है। वहीं, एक दिल एक जान भी कानों को सुकून देता है। खली बली गाना फिल्म में क्यों था.. इसका जवाब तो शायद भंसाली ही दे पाएं। बाकी गाने फिल्म में कुछ खास प्रभाव नहीं छोड़ते।

देंखे या ना देंखे

यदि आप संजय लीला भंसाली की फिल्मों के फैन हैं.. तो यह फिल्म आपके लिए MUST WATCH है.. क्योंकि फिल्म की हर सीन में भव्यता है। साथ ही दीपिका, रणवीर और शाहिद के सच्चे अभिनय को अनदेखा करना सही नहीं है। फिल्म के हर सीन में मेहनत की गई है और वह आपको बड़े पर्दे पर बखूबी दिखेगी.