भारत रत्न विजेता बछेंद्री पाल के संर्घष की कहानी

ख़बरें अभी तक: माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली भारत की पहली और दुनिया की पांचवी महिला बछेंद्री पाल को भारत रत्न से नवाजा गया जो आप सभी जानते है, लेकिन उनके यहां तक पहुंचने के पीछे उनके संघर्ष की लम्बी कहानी है। 23 मई, 1984 के दिन बछेंद्री पाल ने एवरेस्ट पर चढ़कर तिरंगा फहराया था। बछेंद्री पाल ने अपनी जिन्दगी में बहुत से उतार चढ़ाव देखे हैं। पर्वतारोही बछेंद्री पाल का जन्म उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के नकुरी गांव  में हुआ था।

किसान परिवार में जन्म लेने वाली पाल ने किसी तरह बीएड तक की पढ़ाई पूरी की, लेकिन प्रतिभाशाली और होनहार होने के बावजूद उन्हें कोई अच्छा रोजगार नहीं मिला। पैसे कमाने के लिए उन्होने कपड़े सिलना शुरू किया और उसके एवेज में वो पांच रूपये रोजाना कमाती थी। बछेंद्री पढ़ाई ही नही बल्कि खेलकूद में भी आगे रहती थी। बता दें कि बछेंद्री माउंटनियरिंग में यूं ही नहीं आयी। इसके पीछे भी एक कहानी है। बी.ए. के करने के बाद बछेन्द्री ने एम.ए. (संस्कृत) किया और फिर बी.एड. की डिग्री हासिल की।

इतनी पढ़ाई करने के बाद भी बछेंद्री को कहीं अच्छी नौकरी नहीं मिली। जहां भी नौकरी मिलने की बात होती, वहां उन्हें कम तनख्वाह वाली जूनियर लेवल की नौकरी की ऑफर दी जाती। इसलिए उन्होंने ज्वाइन नहीं किया क्योंकि बछेंद्री को लगा कि ये उनकी ज्यादा पढ़ाई की तौहीन है। इसके बाद बछेंद्री ने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में दाखिले के लिए आवेदन कर दिया और उनका नया करियर शुरू हुआ। बछेंद्री का कहना है कि पद्मभूषण मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है, लेकिन मैं किसी सम्मान के लिए काम नहीं करती। मेरी पहली प्राथमिकता महिला सशक्तीकरण है और मैं जीवनभर इस काम में जुटी रहूंगी। महिला सशक्तीकरण के उद्देश्य से वे साढ़े चार हजार बालिकाओं को लीडरशीप ट्रेनिंग दे चुकी हैं।