बद्री केदार के ढोल वादकों की मांग

खबरें अभी तक। किसी भी सरकारी-अर्द्धसरकारी संस्थान में 10-12 सालों की सेवा के बाद ही जहां कर्मचारियों को स्थायी नियुक्ति मिल जाना आम बात हैं, लेकिन विश्वप्रसिद्ध बद्री-केदार मंदिर समिति में पौराणिक समय से ही अपनी सेवाऐं देने वाले अनुसूचित जाति के ढोल-ढमों वादकों की सुध लेने वाला कोई नही हैं, बद्री-केदार मंदिर समिति में अलग अलग कार्यो के लिए सैकड़ों कर्मचारीयों को स्थाई कर्मचारी के तौर पर नियुक्ति दी हो लेकिन बद्री-केदार मंदिर समिति के अन्र्तगत आने वाले मंदिरों में कई पीढ़ियों से ढोल-दमों वादन कर अपनी सेवाऐं दे रहे।

अनुसूचित जाति के मजदूरों की आज तक मंदिर समिति के अधिकारियों ने कोई सुध नहीं ली है, मंदिर समिति की हर वर्ष होने वाली चारधाम यात्रा में आय करोड़ों में होती है, लेकिन प्राचीन काल से ही ढोल-दमों वादन कर अपनी सेवाऐं दे रहे अनुसूचित जाति के ढोल-दमों वादकों को आज भी स्थायी नियुक्ति नहीं दी गयी है, मंदिर समिति आज भी इन लोगों को मात्र हक-हकूक के अनुसार कार्य के दिन का पारिश्रमिक देती है।

बद्री-केदार मंदिर समिति में वर्तमान समय में मात्र 2 ढोल-दमों वादकों को स्थाई नियुक्ति मिली है जबकि 14 ढोल-दमों वादक आज भी प्राचीन हक-हकूक के अनुसार मात्र दैनिक मजदूरी ही दी जाती है, ऐसे में अब ढोल-दमों वादकों ने मंदिर समिति और सरकार से उन्हे स्थाई नियुक्ति की मांग की है, जिस पर मंदिर समिति का कहना है कि समिति हमेशा से ही हक-हकूक के अनुसार ही पारिश्रमिक देती आई है।