जानिए, दिवाली त्योहार का शुभ मुहुर्त..

खबरें अभी तक । कार्तिक की अमावस्या को साल का सबसे बड़ा त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार की तैयारी कई दिनों पहले ही कर ली जाती है । दीपोत्सव कहे जाने वाले इस त्योहार को धार्मिक मान्यता के आधार पर हंसी खुशी से मनाया जाता है।

पुराणों के मुताबिक उस दिन से यह त्यौहार मनाया जा रहा है जब श्रीराम लंकापति रावण को पराजित कर और अपना वनवास समाप्त कर अयोध्या वापस लौटे थे. उस दिन अयोध्यावासियों ने कार्तिक अमावस्या की रात अपने-अपने घरों में घी के दीप प्रज्वलित कर खुशियां मनाई थी.

दीपावली पर विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन करने की परंपरा है. मां लक्ष्मी के साथ-साथ गणेश पूजन, कुबेर पूजन और बही-खाता पूजन भी किया जाता है. दिवाली पर उपासक को अपने सामर्थ्य के अनुसार व्रत करना चाहिए. उपासक या तो निर्जल रहकर या फलाहार व्रत कर सकता है.

सर्वप्रथम मां लक्ष्मी और गणेशजी की प्रतिमाओं को चौकी पर रखें. ध्यान रहें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर रहें और लक्ष्मीजी की प्रतिमा गणेशजी के दाहिनी ओर रहें. कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें. नारियल को लाल वस्त्र में लपेट कर उसे कलश पर रखें. यह कलश वरुण का प्रतीक होता है. घी का दीपक गणेश जी और तेल का दीपक लक्ष्मी जी के सम्मुख रखें.

लक्ष्मी-गणेश के प्रतिमाओं से सुसज्जित चौकी के समक्ष एक और चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं. उस लाल वस्त्र पर चावल से नवग्रह बनाएं. घर में पूजन करते समय नवग्रह ना रखें. रोली से स्वास्तिक एवं ॐ का चिह्न भी बनाएं. पूजा करने हेतु उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे. इसके बाद केवल प्रदोष काल में ही माता लक्ष्मी की पूजा करें. माता की स्तुति और पूजा के बाद दीप दान भी अवश्य करें.

लक्ष्मी पूजन के समय लक्ष्मी मंत्र का उच्चारण करते रहें- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:

लक्ष्मी पूजन प्रदोष काल में ही करना चाहिए और यह समय संध्याकाळ के बाद आरंभ होगा. हालांकि इसमें भी स्थिर लग्न में मां लक्ष्मी की पूजा करना सर्वोत्तम माना जाता है. स्थिर लग्न में पूजन कार्य करने से मां लक्ष्मी घर में वास करती हैं. द्रव्य लक्ष्मी जी का पूजन धनतेरस वाले दिन ही कुबेर जी के साथ करना चाहिए. द्रव्य लक्ष्मी पूजन धनतेरस पर राहुकाल में या सूर्यास्त के बाद ही करना चाहिए.

दीपावली पूजन मुहूर्त

इस दिन पूरा दिन ही शुभ माना जाता है. इस दिन किसी भी समय पूजन कर सकते हैं लेकिन प्रदोष काल से लेकर निशाकाल तक समय शुभ होता है. जो इस दिन बही बसना पूजन करने हैं उनको ही राहु काल का विचार करना चाहिए, जो लोग सिर्फ गणेश लक्ष्मी जी का पूजन करें उनको विचार नहीं करना चाहिए, क्योंकि अमावस्या तिथि पर राहु काल का दोष नहीं होता.

अमावस्या तिथि प्रारंभ- 6 नवम्बर 2018 रात 10:03 बजे, अमावस्या तिथि समाप्त- 7 नवम्बर 2018 रात 9:32 बजे,

मुहूर्त समय

प्रातः 8 बजे से 9:30 बजे तक प्रातः 10:30 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक दोपहर 1:30 बजे से सायंकाल 6 बजे तक सायंकाल 7:30 बजे से रात्रि 12:15 बजे तक

स्थिर लग्न

वृष सायंकाल 6:15 से रात्रि 8:05 तक सिंह रात्रि 12:45 से 02:50 तक वृश्चिक प्रातः 8:10 से 9:45 तक कुम्भ दोपहर 01:30 से 03:05 तक