कच्चे तेल की कीमते नहीं बल्कि डॉलर के मुकाबले रुपये में जारी गिरावट ने लगाई पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में आग

खबरें अभी तक। लगातार बढ़ रहे कच्चे तेल की कीमतों के कारण देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में में भी आग लगी हुई है। हालांकि आंकड़ों को देखे तो बीते कुछ महीनों के दौरान वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम में इजाफे से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपये में जारी गिरावट जिम्मेदार है।

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हाल ही में आए रिजर्व बैंक के अनुमान के मुताबिक जहां वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत में प्रति बैरल 10 डॉलर के इजाफे से देश की जीडीपी ग्रोथ 0.15 फीसदी कम हो जाती है। वहीं जब राजकोषीय और चालू खाता घाटा बढ़ जाता है तो केन्द्र सरकार का अंकगणित खराब होने लगता है। मौजूदा समय में केन्द्र सरकार इन दोनों दबावों से गुजर रही है।

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इसके साथ ही तीसरा सबसे अहम परिवर्तन डॉलर इंडेक्स में दर्ज हो रहा है यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। गौरतलब है कि कच्चे तेल की खरीद दुनिया के सभी देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े डॉलर से करते है।

मौजूदा चुनौतियों के बीच जनवरी 2018 से लेकर अक्टूबर 2018 तक ग्लोबल मार्केट में कच्चा तेल 28 फीसदी महंगा हो चुका है। वहीं कच्चे तेल की कीमतों को रुपये के संदर्भ में देखा जाए तो इस दौरान कच्चा तेल 48 फीसदी महंगा हो गया है।

जनवरी 2018 2018 अधिकतम  % बदलाव
कच्चा तेल (डॉलर में)  60.20  76.90  28
कच्चा तेल (रुपये में)  3,858  5,669  47

ऊपर दिए गए चार्ट के मुताबिक 2018 की शुरुआत में ग्लोबल मार्केट में कच्चा तेल 60.20 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर था। वहीं 2018 में कच्चे तेल का उच्चतम स्तर 76.90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। यानी इस दौरान डॉलर के संदर्भ में कच्चे तेल की कीमत में 28 फीसदी का इजाफा हुआ।

वहीं रुपये के संदर्भ में देखा जाए तो जनवरी 2018 में 1 बैरल कच्चा तेल खरीदने के लिए भारत को 3,858 रुपये अदा करने पड़े। वहीं 2018 में जब कच्चा तेल शीर्ष स्तर पर था तब प्रति बैरल कच्चा तेल खरीदने के लिए भारत को 5,669 रुपये खर्च करने पड़े। लिहाजा, रुपये में कच्चे तेल को खरीदने में भारत को कुल 47 फीसदी अधिक खर्च करना पड़ा।