झारखंड की स्वर्ण रेखा नदी से निकलते हैं सोने के कण…

 खबरें अभी तक । एक ऐसी नदी जिसमे से निकलता है सोना और क्या है इस सोने की नदी  का रहस्य और कहाँ से आता हैं इस स्वर्ण नदी में सोना । इन्ही सब सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़े आज की हमारी यह पोस्ट:

भले ही देश में सोना 25 से 30 हजार रपये प्रति दस ग्राम बिक रहा है लेकिन एक स्थान ऐसा भी है जहां आदिवासी सोने के कण एकत्र करते हैं और उसे वहां के स्थानीय व्यापारी मिट्टी के दामों में खरीद लेते हैं।

हम मजाक नहीं कर रहे ये हकीकत है…दरअसल झारखंड के छोटा नागपुर क्षेत्र में आदिवासी लोगों का एक स्थान है रत्नगर्भा। इस क्षेत्र में स्वर्ण रेखा नदी बहती है जिसका विशेष महत्व है। यहां के आदिवासी इसे नंदा भी कहते हैं।

आजतक रेत में सोने के कण मिलने की सही वजह का पता नहीं लग पाया है..

किसी नदी के बारे में ये बात सुनने में थोड़ी अजीब जरूर लगती है, लेकिन इस नदी की रेत से सदियों से सोना निकाला जा रहा है। भूवैज्ञानिकों का मानना है कि नदी कई चट्टानों से होकर गुजरती है। इसी दौरान घर्षण की वजह से सोने के कण इसमें घुल जाते हैं।

यह नदी झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुछ इलाकों में बहती है..

नदी का नाम स्वर्ण रेखा है। कहीं-कही इसे सुबर्ण रेखा के नाम से भी पुकारते हैं। नदी का उद्गम रांची से करीब 16 किमी दूर है और इसकी कुल लंबाई 474 किमी है।

सोने के कणों के लिये विख्यात होने के कारण इस नदी का नाम स्वर्ण रेखा नदी पडा है..

हैरतअंगेज बात यह है कि स्वर्ण रेखा नदी में जो सोने के कण मिल रहे हैं उसके बारे में राज्य और केन्द्र सरकार दोनों ने ही निगाहें फेरी हुई है। कोई भी सरकारी मशीनरी यह मालूम नहीं कर सकी कि इस नदी के रेत में पानी के साथ मिलकर बहने वाले सोने के कण कहां से निकलना प्रारंभ होते हैं।

आज तक यह रहस्य सुलझ नहीं पाया कि इन दोनों नदियों में आखिर कहां से सोने का कण आता है..

दरअसल स्वर्ण रेखा और उसकी एक सहायक नदी ‘करकरी’ की रेत में सोने के कण पाए जाते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि स्वर्ण रेखा में सोने का कण, करकरी नदी से ही बहकर पहुंचता है। वैसे बता दें कि करकरी नदी की लंबाई केवल 37 किमी है। यह एक छोटी नदी है।

इस काम में कई परिवारों की पीढ़ियां लगी हुई हैं..

झारखंड में तमाड़ और सारंडा जैसी जगहों पर नदी के पानी में स्थानीय आदिवासी, रेत को छानकर सोने के कण इकट्ठा करने का काम करते हैं। यहां के आदिवासी परिवारों के कई सदस्य, पानी में रेत छानकर दिनभर सोने के कण निकालने का काम करते हैं। आमतौर पर एक व्यक्ति, दिनभर काम करने के बाद सोने के एक या दो कण निकाल पाता है।

एक व्यक्ति माह भर में 60-80 सोने के कण निकाल पाता है..

हालांकि कभी-कभी यह संख्या 30 से कम भी हो सकती है। ये कण चावल के दाने या उससे थोड़े बड़े होते हैं। रेत से सोने के कण छानने का काम सालभर होता है। सिर्फ बाढ़ के दौरान दो माह तक काम बंद हो जाता है।

रेत से सोना निकालने वालों को एक कण के बदले 80-100 रुपए मिलते हैं..

एक आदमी सोने के कण बेचकर महीने भर में 5 से 8 हजार रुपए कमा लेता है। हालांकि बाजार में इस एक कण की कीमत करीब 500 रुपए या उससे ज्यादा है। स्थानीय दलाल और सुनार, सोना निकालने वाले लोगों से ये कण खरीदते हैं। कहते हैं कि यहां के आदिवासी परिवारों से सोने के कण खरीदने वाले दलाल और सुनार इस कारोबार से करोड़पति बन गए है।

इस नदी के आसपास के क्षेत्रों में पायी जाने वाली लाल मोंरंग मिट्टी में भी सोने के कण पाये जाते हैं..

चट्टानों और पत्थरों के बीच पायी जाने वाली मोरंग मिट्टी को खोदकर आदिवासी अपने घर ले जाते हैं। उस मिट्टी को बडे बर्तनों में घोलकर उसे बारीक कपडों में छाना जाता है फिर विशेष प्रक्रिया द्वारा मिट्टी से सोने के बारीक कण अलग कर लिये जाते है।

थोड़ा सा अजीब जरुर लगेगा पर स्वर्ण नदी के बारे  में आप ये अद्भत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय रोचक बातें पढ़कर हैरान जरुर हुए होंगें। आखिर , भारत देश की इन्हीं रंगीन खूबियों से ही हमारा देश विश्व में इतना विख्यात है।