25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में जन्मे यादों में हमेशा रहेंगे ‘अटल’

ख़बरें अभी तक। कुछ लोगों का सफर से रास्ते के पत्थर हटाते हुए पहाड़ हो जाता है और वो जीवन के हर मुकाम पर, अपने काम में अपनी सोच में अटल होते हैं, उनके सफर का हर लम्हा दूसरों को प्रेरणा देता है, किसी शख्स को उसके विरोधियों की मुहब्बत भी है, उनके दिल और जुबान पर भी उसके लिए सम्मान हो तो इससे बड़ी कामयाबी कुछ नहीं.

25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी ने जन संघ से भारतीय जनता पार्टी के सांसद और सांसद से देश के प्रधानमंत्री तक के सफर में अटल बिहारी वाजपेयी ने कई पड़ाव तय किए हैं. एक स्कूल में अध्यापक पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी के घर कृष्णा वाजपेयी की कोख से जन्म लेने वाले अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी का सफर कोई आसान नहीं था, शुरु से ही काव्य के प्रति प्रेम रखने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने ग्वालियर से ही अपनी पढ़ाई पूरी की। राजनीति शास्त्र से एमए करने के बाद, अटल बिहारी वाजपेयी ने पत्रकारिता से अपना करियर शुरु किया। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय से राजनीति का पाठ पढ़ने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिकाओं के संपादन का काम भी बखूबी किया। 1951 में भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य के रूप में अपनी भाषण शैली से राजनीति के शुरूआती दिनों में ही अटल बिहारी वाजपेयी ने रंग जमा दिया। 1957 जन संघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया, लखनऊ और मथुरा से अटल चुनाव हार गए लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो दूसरी लोकसभा में पहुंचे, 1968 से 1973 तक अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जन संघ के अध्यक्ष भी रहे और विपक्षी पार्टियों के दूसरे नेताओं के तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया। 1977 में जनता पार्टी की सरकार के दौरान वाजपेयी विदेश मंत्री बने,  1980 में भारतीय जन संघ का नाम भारतीय जनता पार्टी हो गया, 1980 से 1986 तक अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी के अध्यक्ष रहे.

अटल बिहारी वाजपेयी नौ बार लोकसभा सांसद चुने गए, 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे। अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं, 16 मई 1996 में वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से उन्हें तेरह दिन बाद ही इस्तीफा देना पड़ा, 1998 में लोकसभा चुनाव में सहयोगी पार्टियो के साथ मिलकर वाजपेयी ने सरकार बनाई और दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने, एआईएडीएमके के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार गिर गई, इस वाजपेयी तेरह महीने प्रधानमंत्री रहे और उसके बाद 1999 में फिर अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने और 2004 तक एनडीए सरकार में अपना कार्यकाल पूरा किया

अटल बिहारी तीन बार देश के प्रधानमंत्री बन चुके 
अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं। पहली बार अटल बिहारी 1996 में आैर दूसरी बार 1998 में प्रधानमंत्री बने। इसके बाद वह तीसरी बार 1999 को वह पीएम बने आैर  2004 तक अपना कार्यकाल पूरा किया। अटल ने भारत के विदेश मंत्री का पद भी संभाला। आजादी के बाद भारत की घरेलू और विदेश नीति को आकार देने में एक सक्रिय भूमिका निभाई।

इन पुरस्कारों सें सम्मानित हो चुके पूर्व पीएम अटल
अटल जी दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित हो चुके हैं। वहीं उन्हें 1994 में भारत का सर्वश्रेष्ठ सासंद पुरस्कार आैर भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। अपने नाम के ही समान अटलजी एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति हैं।

सांसद से प्रधानमंत्री

अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं. दूसरी लोकसभा से तेरहवीं लोकसभा तक. बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति रही. ख़ासतौर से 1984 में जब वो ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए थे.

1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे.

16 मई 1996 को वो पहली बार प्रधानमंत्री बने. लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा. इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे.

1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने. लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए.

1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया. गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली.