पाकिस्तानी फौज के खिलाफ कार्रवाई का इस शहीद जवान के परिवार को आज भी है इंतजार

खबरें अभी तक। एक ऐसी शहादत जो शायद जंग शुरू होने से पहले दी गई। ये कहानी है सौरभ कालिया और उनके पांच साथियों की। नरेश सिंह, भीखा राम, बनवारी लाल, मूला राम और अर्जुन राम। ये सभी काकसर की बजरंग पोस्ट पर गश्त लगा रहे थे, जब ये दुशमन के हाथों पकड़े गए। 22 दिनों तक इन्हें जबरदस्त यातना दी गई। सौरभ कालिया की उम्र उस वक्त 23 साल थी और अर्जुन राम की महज 18 साल।

कालिया का जन्म 29 जून 1976 को अमृत सर में हुआ था इंकज शिक्षा पालमपुर में हुई थी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह आर्मी में भर्ती हो गए थे ओर  कैप्टन सौरव कालिया की उम्र तब महज 23 साल थी। फौज की सेवा में बस एक महीने हुए थे। सौरव कालिया बटालिक में 6 जवानों की अपनी टुकड़ी के साथ गश्त पर थे। गश्त के दौरान ही पाकिस्तानी घुसपैठियों ने उन्हें धर दबोचा। तीन हफ्ते बाद उनके शव क्षत-विक्षत हालत में सेना के पास लौटे। उनकी पहचान तक मुश्किल थी।

तब से आज तक कालिया परिवार की याचिका को पाकिस्तानी फौज के खिलाफ कार्रवाई का इंतजार है। तमाम विवादों के बीच सरकार ने फिर भरोसा दिलाया कि सौरभ कालिया के मामले को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ले जय गया और इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में उठाने की नई पहल थी

19 साल पहले जहां कभी तोपें गरजे थीं, जहां गोलियां बरसी थीं। आज वहां एक अजीब सी खामोशीं है। आंखें नम हैं मगर सीना आज भी चौड़ा है। पुरानी यादों के बीच आज भी देश के जवान कदम से कदम मिलाकर अपने साथियों को सलाम कर रहे हैं। द्रास सेक्टर का वॉर मेमेरियल वो जगह है जहां हर साल 26 जुलाई को कारगिल की जीत का जश्न मनाया जाता है।

जवान हों या बुजुर्ग हर पीढ़ी के लोग जंग के किस्से जानने यहां आते हैं, तस्वीरें लेते हैं, अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं। सेना के जवान उन्हें शहीद साथियों की बहादुरी के किस्से सुनाते हैं। सैलानी अपने सफर पर आगे बढ़ जाते हैं मगर शहीद सिपाही अपने एकांत के साथ यहीं रह जाते हैं। पर इस फलक पर लिखे नाम यहां आने वाले हर शख्स को पुकारते हैं। हर नाम शहादत की एक न भूलने वाली दास्तान बयान करता है।

19 साल पहले जहां कभी तोपें गरजे थीं, जहां गोलियां बरसी थीं। आज वहां एक अजीब सी खामोशीं है। आंखें नम हैं मगर सीना आज भी चौड़ा है।