नूंह: स्कूल की हालत बद से बदतर, अध्यापकों का भारी अभाव

ख़बरें अभी तक। नूंह जिले के संगेल गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में सुविधाओं के साथ-साथ स्टाफ का घोर अभाव है. स्कूल को सरकार ने इसी वर्ष जनवरी में दसवीं से बारहवीं तक अपग्रेड तो कर दिया, लेकिन सुविधाओं को शायद मनोहर सरकार भूल गई. सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को भले ही निजी स्कूलों के बरार लाने का वायदा किया जा रहा हो, लेकिन सरकारी स्कूलों में बच्चों का भविष्य दांव पर है. उनके लिए न तो पढ़ाई का बेहतर माहौल है और न ही तालीम देने वाले शिक्षक है.

ग्रामीण इस बाद से बेहद खफा हैं तो शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चे भी भविष्य को लेकर चिंतित दिखाई दे रहे हैं. जानकारी के अनुसार एक ही परिसर में प्राइमरी, मिडिल ब्याज, मिडिल गर्ल्स स्कूल, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय स्कूल चलते है. प्राइमरी में 153 बच्चे हैं तो मिडिल ब्यॉज में 72 बच्चे है. 9 -11 वीं तक 169 छात्र हैं, जिनमें 86 लड़कियां हैं. साढ़े पांच एकड़ भूमि में बने इस स्कूल में शौचालय तो हैं ,लेकिन अध्यापकों के लिए नहीं हैं. जो बच्चों के शौचालय हैं, उनका रखरखाव ठीक नहीं है.

स्कूल परिसर में बने लाइब्रेरी, आर्ट्स एंड क्राफ्ट, साईंस लैब इत्यादि के रूम बिना स्टाफ के ग्रामीणों के सामान भरने और लेबर के रहने के काम आ रहे हैं. स्कूल परिसर में पानी की कमी तो नहीं है,लेकिन बिजली पसीने जरूर छुड़ा रही है. लड़कियों के लिए बने मिडिल स्कूल में तो पिछले 7 -8 सालों में बिजली का कनेक्शन तक नहीं हुआ है. इस स्कूल में न सफाई कर्मचारी है और न चपरासी है. लड़कियां प्यास बुझाने के लिए खुद मटका भरकर पानी लाकर प्यास बुझाने को मजूर हैं. अध्यापकों की बात करें तो प्राइमरी तक तो 6 टीचर हैं ,लेकिन लड़के-लड़कियों के मिडिल स्कूलों में घोर अभाव है. लड़कियों के स्कूल में एलिमेंट्री हेड कैलाश चंद हैं तो उनके साथ ऋषिराज मैथ के अतिथि अध्यापक हैं, जो 68 लड़कियों को तालीम दे रहे हैं.

लड़कों के स्कूल की बात करें तो सुरेश सिंह अंग्रेजी प्रवक्ता को प्रिंसिपल की जिम्मेवारी दी हुई है. इसके अलावा अमित वालिया हिंदी लेक्चरर हैं. हुकमचंद एलिमेंट्री हेड हैं तो ललित कुमार पीटीआई हैं. हद तो तब हो गई जब लैब अटेंडेंट सुमन को हिंदी विषय पढ़ाने को मजबूर होना पड़ रहा है. स्कूल में पेड़ – पौधों की हरियाली और कमरों की भरमार है, लेकिन शिक्षा व्यवस्था राम भरोसे है. शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों की परेशानी इसलिए लाजमी है कि ऐसे हालात में वो कैसे दुनिया के मुकाबले कदम ताल कर सकते हैं. सरकार भले ही बेटियों की शिक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे करती हो, लेकिन वर्ष 2017 सितंबर माह में सात साल बाद इस स्कूल को गेस्ट टीचर ऋषिराज के रूप में मिला.

उससे पहले भेड़-बकरियों की तरह हाई स्कूल के अध्यापक बच्चों को घेरकर बैठे रहते थे. गत 2 जुलाई से स्कूल गर्मियों की छुट्टियों के बाद खुले है. स्कूल की हालत के लिए जिला शिक्षा अधिकारी डॉक्टर दिनेश शास्त्री से बात की गई तो उन्होंने कहा कि उनका तबादला गुरुग्राम हो चुका है. जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी सेवानिवृत हो चुके है. डीईओ का चार्ज अभी दिनेश शास्त्री के पास है. जिस जिले में आला शिक्षा अधिकारी नहीं, स्कूलों में अध्यापक से लेकर चपरासी तक नहीं, स्कूलों में पर्याप्त सुविधा नहीं. ऐसे जिलों के बोर्ड के परिणाम से अगर बेहतरी की उम्मीद की जाये तो यह बड़ी बेईमानी होगी.

जब बोर्ड की परीक्षा आती हैं, तो नकल पर नकेल कसने के लिए जिला प्रशासन-पुलिस प्रशासन से लेकर बोर्ड के सचिव और चैयरमेन तक नूंह मेवात में ही डेरा डाल लेते हैं. यही कारण है कि नतीजे खराब आते हैं और पूरे जिले की फजीहत होती है. सरकारी स्कूलों में बच्चों की घटती संख्या और सरकारी स्कूलों में स्टाफ पर ध्यान नहीं दिया तो हालात बद से बदतर होने से इंकार नहीं किया जा सकता.