सरकार और खिलाड़ियों में चल रहा विवाद, खेल नीति में 24 घंटो में हुआ बदलाव

खबरें अभी तक। सरकार और खिलाड़ियों में चल रहा विवाद काफी समय से सुर्खियों को विषय बना हुआ है। वो चाहे सम्मान राशि की बात हो या फिर सरकारी नौकरी में रहते अतिरिक्त कमाई का 33% हिस्सा बतौर टैक्स मांगने का मसला। लेकिन सरकार के आदेश पर जब खिलाड़ी स्टैंड लेते हैं तो झुकना सरकार को ही पड़ता है। इस बार भी वही हुआ। खेल नीति घोषणा के 24 घंटे के अंदर बदलनी पड़ी। विवादों की शृंखला से नीति सवालों में है। 8 सालों में सरकार 267 खिलाड़ियों को सम्मान में 532 करोड़ रुपए दे चुकी है, पर 208 खिलाड़ी पदक रिपीट तक नहीं कर पाए। चंद खिलाड़ी ही सम्मान के बाद बड़ी प्रतियोगिताओं में पदक का रंग बदल पाए। यह खेल नीति ही है कि पदक जीतने पर करोड़ों रुपए सम्मान में देते हैं। लेकिन खिलाड़ियों की नई पौध और सेकंड लाइन तैयार करने की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि जब से सरकार ने कॉमनवेल्थ पदक विजेताओं को भी करोड़पति बनाना शुरू कर दिया, तब से कुछ खिलाड़ियों ने आसान लक्ष्य खोजने शुरू कर दिए। खिलाड़ी या तो उन्हीं खेलों की तैयारी करते हैं, जो केवल कॉमनवेल्थ में हैं और ओलिंपिक में नहीं। जिनके खेल ओलिंपिक में भी हैं, उसका भी फायदा नहीं मिल रहा है। जिन्हें कॉमनवेल्थ में पदक मिल जाता है। उन्हें सरकार करोड़ों रुपए और नौकरी दे देती है। प्रदेश की उम्मीदें बढ़ जाती हैं कि ओलिंपिक में भी पदक लाएंगे, लेकिन इनके खेल का स्तर गिर जाता है। विभिन्न प्रतियोगिताओं के जो 267 खिलाड़ी सम्मान प्राप्त कर चुके हैं, उनमें से केवल 15 खिलाड़ी ही अपने खेल को निखार पाए हैं। नहीं तो किसी ने खेल छोड़ दिया तो कोई अगली प्रतियोगिताओं में पदक नहीं जीत पाया या उस पदक को बड़ा नहीं कर पाया।

गीता फौगाट 2010 कॉमनवेल्थ में गोल्ड जीतने के बाद दोबारा किसी भी कॉमनवेल्थ, एशियाड या ओलिंपिक में पदक नहीं जीत पाईं। अनीता श्योराण, संजय, हरप्रीत सिंह, अन्नुराज सिंह, निर्मला देवी, दीपक शर्मा, जोगेंद्र, सुमन कुंडू, धर्मेंद्र दलाल, जयभगवान, दिलबाग सिंह जैसे कई खिलाड़ी 2010 कॉमनवेल्थ में मेडल जीतने के बाद कॉमनवेल्थ, एशियाड या ओलिंपिक में पदक नहीं जीत पाए। 2014 कॉमनवेल्थ के विजेता अमित कुमार दहिया, ललिता कुमारी, सत्यव्रत कादियान, गीतिका जाखड़ और मनदीप जांगड़ा दोबारा इस स्तर की प्रतियोगिता में भी पदक नहीं ला पाए हैं। जिन खिलाड़ियों ने खेल का स्तर बनाए रखा, उनमें 2012 ओलिंपिक में शूटर गगन नारंग, पहलवान सुशील, बैडमिंटन स्टार साइना, कॉमनवेल्थ पदक विजेता अनिशा सैयद व अन्नू राज सिंह जैसे खिलाड़ियों को सरकार ने केवल इसलिए पैसा दिया, क्योंकि इनका हरियाणा से पुराना कनेक्शन रहा है।

लेकिन ये खिलाड़ी न तो कभी प्रदेश से खेले हैं और न यहां नए खिलाड़ियों को तराशने के लिए काम किया। दरअसल पदक जीतने वालों की प्राथमिकता खेल नहीं रह जाती। विजेंद्र सिंह जैसे खिलाड़ी कभी फिल्मों में व्यस्त हो गए तो कभी प्रोफेशनल लीग में चले गए। इसी तरह ओलिंपिक में पदक जीतने पर साक्षी मलिक के लिए सरकार ने स्पेशल डिमांड पर रोहतक एमडीयू में कुश्ती डायरेक्टर का पद बनाया। लेकिन साक्षी ने उसे भी ठुकरा दिया। प्रदेश से सम्मान राशि लेकर नौकरी रेलवे में करने लगीं। अब रेलवे की ओर से खेलती हैं। क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग को सरकार ने झज्जर में जमीन दी, जिस पर स्कूल व खेल एकेडमी तो बनी, पर उसकी फीस काफी महंगी है। ऐसे ही विवाद के बाद पहलवान सुशील कुमार से जमीन वापस ली गई।