रिजर्व बैंक की ताज़ा रिपोर्ट बढ़ा सकती है मोदी सरकार की मुसिबतें

खबरें अभी तक। मोदी सरकार अपने चार साल का कार्यकाल पूरा कर चुनावी वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। उसे इस साल अपनी उपलब्धियों का चोला पहनकर जनता के सामने जाना है। लेकिन रिजर्व बैंक की ताज़ा रिपोर्ट सरकार की परेशानियों को बढ़ा सकती है।

हम बात कर रहे हैं भारत में बैंकिंग की लगातार बिगड़ती हालत की। RBI की ताज़ा रिपोर्ट को देखें तो ऐसा लगता है कि अगली 2-3 तिमाही यानी छह से नौ महीने का समय बैंकिंग सेक्टर के लिए और भी बुरा वक्त साबित हो सकता है। यह स्थिति केवल सरकारी बैंकों की नहीं है, पूरा का पूरा बैंकिंग सेक्टर इसकी चपेट में आता नज़र आ रहा है। सचमुच सरकार के लिए ये संकेत खासे चिंताजनक हैं।

आपको याद होगा कि पिछला वित्त वर्ष देश की बैंकिंग व्यवस्था के लिए बेहद खराब साबित हुआ था। जहां पिछले साल महज दो सरकारी बैंकों ने नेट प्रॉफिट के साथ साल को खत्म किया वहीं बाकी बैंकों ने मिलकर कुल 87,000 करोड़ रुपये का घाटा उठाया।

बैंकिंग की यह खराब हालत पिछले साल सिर्फ सरकारी बैंकों तक नहीं सीमित रही थी। एनपीए (NPA- Non Performing Assets) की मार के चलते शेयर बाजार पर लिस्टेड कुल 38 बैंकों का गंदा कर्ज यानी बैड लोन 10 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर गया था।

हाल में जारी हुई रिजर्व बैंक की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट का मानना है कि पहले से बिगड़ी बैंकिंग व्यवस्था के लिए अभी इससे खराब दिन आने वाले हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक देश में सरकारी और निजी बैंकों की कमाई के हिसाब से आने वाली दो-तीन तिमाही बेहद खराब रह सकती हैं। रिजर्व बैंक का दावा है कि मौजूदा तिमाही में कॉमर्शियल बैंकों का बैड लोन बढ़ने जा रहा है। इसके साथ ही मौजूदा वित्त वर्ष की आने वाली कुछ तिमाही में बैंकों के सामने मुनाफा घटने के साथ-साथ उनकी संपत्ति पर खतरा बढ़ सकता है। जिसके चलते देश में एनपीए का आंकड़ा नया रिकॉर्ड छू सकता है।