ख़बरें अभी तक। चरखी दादरी: अमीरों के लिए जहां फ्रिज बन गए, वहीं गरीबों के लिए मटका आज भी फ्रिज से कम नहीं है. गर्मियों में ठंडे पानी के लिए मटकों व मुहूर्त, हवन यज्ञ में आज भी मिट्टी के बर्तनों का ही प्रयोग किया जाता है. बदलते दौर में मिट्टी के बर्तनों की मांग बहुत कम हो गई है. कुम्हारों की आजीविका का साधन बने मिट्टी के बर्तनों पर महंगाई की मार भी पड़ती नजर आ रही है. पुश्तैनी रूप से कार्य करने वाले कुम्हार भी अब इसे बनाने में परहेज करने लगे है.
पानी के घड़े की जगह फ्रिज व बंद बोतलों ने ले ली है. जहां अमीर आदमी इन आधुनिक वस्तुओं का जमकर प्रयोग कर रहे हैं, वहीं मध्यम वर्ग व गरीब वर्ग के लोग आज भी मिट्टी के बने बर्तनों से पानी पी रहे है. ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी मिट्टी से बने बर्तनों को इस्तेमाल करते हैं. गर्मी के मौसम के आते ही चरखी दादरी में पारा 46 से पार चला जाता है ऐसे में अमीर आदमी तो इलेक्ट्रॉनिक आइटमों का सहारा लेकर गर्मी से राहत पा लेते हैं लेकिन गरीब व्यक्ति के लिए मिट्टी से बने बर्तन वह मटके से ही अपने कलेजे की प्यास बुझानी पड़ती है. गर्मी को देखते हुए चरखी दादरी के बाजारों में मटका बाजार भी सज गया हैं. लोग मटके को खरीदने के लिए आ रहे हैं. लोगों का मानना है कि मटके के पानी से बीमारियां कम होती है और मटके का पानी हाजमे के लिए अच्छा होता है.
चरखी दादरी से उमेद कुमार ने बताया कि आजकल मिट्टी भी बहुत दूर से लानी पड़ती है. वहीं मिट्टी के बर्तन को पकाने में 6 से 7 दिन की मेहनत लगती है. जिस मेहनत व समय के बीच वे बर्तन तैयार करते हैं, उनको इनके उचित दाम नहीं मिल पा रहे है. वहीं इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम आ जाने की वजह से उनके पेट पर लात लगी है. लेकिन बदलते मौसम के साथ मिट्टी के बर्तनों का चलन भी थोड़ा-थोड़ा बढ़ा है जितना भी पर्याप्त मात्रा में हो पाता है पेट का गुजर बसर करने के लिए काम तो करना ही पड़ता है.
धर्मबीर सिंह कहते हैं कि सबसे ज्यादा डिमांड सुराही की है, क्योंकि मटकों की बजाय सुराही में पानी ज्यादा ठंडा रहता है. सुराही पर भी महंगाई की परछाई दिखाई दे रही है. छोटी सुराही 50 रुपए व बड़ी सुराही 75 रुपए की बिक रही है. ऐसे में साफ जाहिर है कि महंगाई के कारण अब लोग भी मिट्टी के बर्तनों से परहेज करने लगे है.