भगवान शिव शंकर का साक्षात बाल रूप है, सिद्ध बाल योगी 

ख़बरें अभी तक। हमीरपुर जिला के दक्षिण में बिलासपुर जिला की सीमा पर स्थित धौलगिरि पर्वत शिखर पर स्थित बाबा बालक नाथ का दिव्य पावन स्थल है, बाबा बालक नाथ जी को भगवान शिव का अवतार माना जाता है. जनश्रुति के अनुसार जब ऋषि व्यास के पुत्र शुकदेव का जन्म हुआ तो उसी समय 84 सिद्धों ने भी विभिन्न स्थानों पर जन्म लिया. इनमें बाबा बालक नाथ जी भी एक थे. बाबा जी मूल रूप से बालयोगी हैं, तथा दत्तात्रेय के शिष्य थे. बाबा बालक नाथ का सिद्ध रूप में जन्म लेने का कथनाक शिव भगवान की अमर कथा के साथ भी जुड़ा हुआ है.

जनश्रुति के अनुसार भगवान शिव एक निर्जन स्थान पर माता पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे व कथा सुनते ही माता पार्वती को नींद आ गई. उस दौरान समीप तोता बैठा था. जो कथा को सुन रहा था तथा माता पार्वती को सोया देखकर निरन्तर पार्वती के स्थान पर हुंकार भर रहा था, तथा कथा समाप्ति पर शिव भगवान ने देखा कि पार्वती गहन निद्रा में है, तथा अमर कथा तोता सुन रहा था. इससे कुपित होकर शिव ने अपना त्रिशूल तोते पर दे मारा और तोता भयभीत होकर भागा. इसी समय ऋषि व्यास की पत्नी जमाई ले रही थी तो तोता मुंह खुला देखकर ऋषि की पत्नी के पेट में चला गया.

निर्दोष नारी को देखकर त्रिशूल पीछे हट गया. इस सारी घटना को सुनकर भगवान शिव वहां पहुंचे तथा व्यास ऋषि को तोते का प्रसंग सुनाया. व्यास ने भगवान शिव को तोते को पेट से बाहर आने तक प्रतीक्षा करने को कहा, काफी प्रतीक्षा पर भी तोता बाहर नहीं आया. शिव के वहां ठहरने से सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया. देवताओं ने नारद मुनि से सहायता मांगी. नारद शिव के पास पहुंचे तथा कहा कि तोते ने अमर कथा सुन ली है. इससे उसने अमरत्व प्राप्त कर लिया है. अतः तोते को क्षमा कर उसे बाहर आने को कहा. उस समय तोते ने प्राथना की कि वह मानव रूप में पेट से बाहर निकलेगा उस समय जन्म लेने बाले बालक को अमरत्त्व के साथ सर्व सिद्धांतो से सम्पन होने का वरदान दिया जाए.

जैसे ही भगवान शिव ने प्रार्थना स्वीकार की, उसी समय ऋषि की पत्नी के मुख से एक अलौकिक बालक प्रकट हो गया. यही बालक मुनि शुकदेव कहलाया, उसी समय जन्मे नौ नाथ और चौरासी सिद्धों के नाम से प्रसिद्ध हुए. बाबा बालक नाथ जी ने हर युग में जन्म लिया है. सत युग में उन्हें स्कंद, त्रेतायुग में कौल, द्वापर युग में महाकौल और कलयुग में बाबा बालक नाथ जी के रूप में जन्म लिया. जनश्रुति के अनुसार बाबा बालक नाथ जी ने काठियावाड़ गुजरात मे जन्म लिया. इनके पिता का नाम विष्णु नारायण तथा माता का नाम लक्ष्मी था. वह बाल्यावस्था में ही घर छोड़कर गिरनार पर्वत के द्रमन में जूनागढ़ के महंत दत्तात्रेय के पास पहुंचे. यहां ज्ञान प्राप्त कर वह सिद्ध कहलाए.

बाबा बालक नाथ जी के चैत्र मास मेलों का आयोजन हर वर्ष 14 मार्च से 13 अप्रैल तक मेलों का आयोजन होता है. उत्तरी भारत के विश्वविख्यात सिद्धपीठ बाबा बालक नाथ मंदिर में वैसे तो सारा साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन 14 मार्च से त्रैमासिक चाला मेले का शुभारंभ होता है. चैत्र मास मेलों में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं का मानना है कि मेले के दिनों में मंदिर आने से बाबा जी की पूरी कृपा उनके परिवार पर बनी रहती है. इसलिए श्रद्धालुओं विशेष रूप से इन्हीं दिनों में देश विदेश के विभिन्न स्थानों से यहां आना पसंद करते है और बालयोगी की पावन गुफा में शीश नवाते है.

चैत्र मास मेलों की शुरुआत कब हुई इस बारे में कोई वैदिक प्रमाण नहीं मिलता है, लेकिन किदवंतीयों के मुताबिक कुछ लोगों ने इस पुण्य संक्रांति को बालयोगी बाबा बालक नाथ का जन्म दिन बताया है तो कुछ लोगों ने माता रत्नों के साथ 12 वर्ष का समय बिताने के बाद सिद्धयोगी बाबा बालक नाथ धौलागिरी पर्वत के उच्च शिखर में प्रविष्ट होकर दियोट नामक राक्षस की गुफा में इसी रोज प्रकट हुए थे.

अतः बाबा के प्रकट दिवस के रूप में मनाने वाले इसी दिन को मेले की शुरुआत मानते है. चैत्र मास के मेलों का अपना महत्व है. इन मेलों में अगर सच्चे मन से श्रद्धापूर्वक बाबा बालक नाथ की पूजा अर्चना व हवन डाला जाए तो सिद्ध बालयोगी साक्षात दर्शन देते है, कहते है कि सिद्ध बाबा बालक नाथ कलियुग के अवतार है तथा भगवान शिव शंकर का बाल रूप है. क्योंकि माता पार्वती जी ने बाबा बालक नाथ को बाल रूप में रहने का वरदान दिया था व भगवान शंकर के दर्शन करवाये थे.

भगवान शिव शंकर ने बाबा बालक नाथ को वरदान दिया था कि आप कलयुग में विभिन्न कष्टों से पीड़ित लोगों को कष्टों से मुक्ति प्रदान करोगे व बाबा बालक नाथ जी के नाम से जाने जाओगे, ऐसा माना जाता है कि बाबा जी के दर्शन, स्तुति पाठ करने मात्र से ही विभिन्न रोगों, कष्ट व भूत, प्रेत,आत्मा व भय आदि से सब मुक्ति मिल जाती है.