2019 लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा को कई नए सबक सिखा गए उप चुनाव के परिणाम

खबरें अबी तक। महाराष्ट्र की दो लोकसभा सीटों के उप चुनाव में एक पर मिली जीत के कारण यहां उत्तर प्रदेश जैसी किरकिरी होने से भले बच गई हो, लेकिन ये चुनाव 2019 के लिए भाजपा को कई नए सबक सिखा गए हैं। भाजपा ने मुंबई से सटी पालघर लोकसभा सीट 29,572 मतों से जीती और विदर्भ की भंडारा-गोंदिया सीट करीब 40,000 मतों से हार गई।

भंडारा-गोंदिया राकांपा के दिग्गज नेता प्रफुल पटेल की परंपरागत सीट मानी जाती है। 2014 में प्रफुल पटेल प्रबल मोदी लहर के कारण यह सीट काफी बड़े अंतर से हार गए थे, लेकिन भाजपा के टिकट पर जीते नाना पटोले ने कुछ माह पहले लोकसभा सदस्यता एवं भाजपा दोनों छोड़ दी। फलस्वरूप उप चुनाव हुए। इसमें राकांपा ने मधुकर कुकड़े को उम्मीदवार बनाया और कांग्रेस में शामिल हो चुके नाना पटोले ने भी उन्हें समर्थन दिया। कांग्रेस-राकांपा की संयुक्त ताकत के सामने भाजपा को 40,000 मतों से हार का मुंह देखना पड़ा।

पालघर की लड़ाई ज्यादा सुर्खियों में थी। यहां भाजपा सांसद चिंतामणि वनगा के निधन के कारण उप चुनाव हो रहा था। वनगा के पुत्र श्रीनिवास वनगा को टिकट भाजपा के बजाय शिव सेना ने दिया था। भाजपा के उम्मीदवार थे पिछला लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर हार चुके राजेंद्र गावित। स्थानीय दल के रूप में काफी मजबूत मानी जाने वाले बहुजन विकास आघाड़ी के साथ-साथ कांग्रेस भी मैदान में थी। कांटे की लड़ाई में यह सीट भाजपा 29,572 मतों से निकालने में कामयाब रही। शिवसेना दूसरे स्थान पर रही और कांग्रेस उम्मीदवार दामोदर सिंगड़ा को तो 47,714 मतों के साथ पांचवें स्थान से संतोष करना पड़ा है।

गौर करें, तो इस चुनाव में सर्वाधिक नुकसान कांग्रेस को ही हुआ है। भंडारा-गोंदिया में वह सिर्फ राकांपा के समर्थक दल की भूमिका में रही और पालघर में लड़ने के बावजूद वह पांचवें स्थान पर जा गिरी। भाजपा के सामने मुख्य विपक्ष बनकर उभरी शिवसेना।

कांग्रेस समझे या न समझे, लेकिन 2014 के दूसरे स्थान से खिसककर अब पांचवें स्थान पर पहुंचना उसके लिए अच्छे संकेत कतई नहीं हैं। लेकिन संभलने और सबक सीखने की जरूरत सत्तारूढ़ भाजपा के लिए ज्यादा है। 2014 का लोकसभा चुनाव वह शिवसेना के साथ मिलकर लड़ी थी। तब दोनों दलों की संयुक्त ताकत के सामने कांग्रेस-राकांपा को तगड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। अब यदि शिवसेना के साथ-साथ कुछ छोटे मित्रदल भी उससे खफा हो गए तो 2019 की लड़ाई उसके लिए आसान नहीं होगी।