मेवात में लगातार गिरता जल स्तर बना चिंता का विषय

ख़बरें अभी तक। मेवात में गिरता जल स्तर चिंता का विषय बना हुआ है. जल स्तर दिनों दिन गिरता जा रहा है. ऐसे में लोगों के सामने पानी की किल्लत बनी हुई है. हालांकि मेवात में रैनीवेल परियोजना कुछ हद तक लोगों को पानी उपलब्ध करा रही है, लेकिन आज भी ऐसे कई गांव है. जहां पर पानी को किसी कीमती वस्तु से कम नहीं आंका जाता.  जिले के कुछ गांवों में हालात ऐसे है,  जहां पर भू-जल करीब तीन सौ फूट से भी नीचे चला गया है. गिरते भू-जल स्तर को लेकर लोग भी जागरूक नहीं है. शहर व गांवों में जहां पर जलस्तर कुछ हद तक उंचा है, वहां पर जमकर जल दोहन किया जा रहा है. पानी की किल्लत हमेशा मेवात में बनी रही है. नहरें और तालाब सूखे हुए हैं. बरसात साल दर साल कम होती जा रही है. जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के टयूबवैल जिले जवाब दे चुके हैं.

आपको बता दें की मेवात की जमीन में अधिकतर पानी खारा है. यहां तक खेतों की सिंचाई के लिए भी यहां का पानी लाभदायक नहीं है. खारा पानी होने के कारण वर्षों से पीने के पानी की समस्या बनी हुई है. वर्ष 2004 ईनेलो की सरकार द्वारा रैनिवेल परियोजना को अमलीजामा पहनाया गया, ताकि यहां के लोगों को पीने का पानी उपलब्ध हो सके. लेकिन रैनीवेल परियोजना भी लोगों को पानी पंहुचाने में सक्षम नहीं हो पा रही है. आज भी ऐसे कई गांव हैं जिनको रैनीवेल से नहीं जोड़ा गया है या फिर जिन्हें जोड़ा गया है उन लाईनों में पानी नहीं छोड़ा गया है.

क्या है रैनीवेल योजना

रैनीवेल परियोजना का पूरा नाम राजीव गांधी पेयजल योजना है. शुरू में यह योजना 405 करोड़ रुपये की थी, जिसे 2004 में इनैलो ने मंजूर किया था, बाद में राशि घटाकर करीब 200 करोड़ रुपये कर दी गई. यमुना के समीप रहीमपुर और माहोली गांव में टयूबवैल लगाकर मेवात जिले तक लाइन बिछाई गई. पुन्हाना सब डिवीज़न कार्यालय से करीब 160 गांवों को इस योजना का पानी मिल रहा है. इसे दो भागों बांटा गया है. एक भाग से नूंह और पलवल जिले के कुछ गांवों को तो दूसरे चरण में पुन्हाना-नगीना इलाके को पानी मिल रहा है.

प्रथम चरण की शुरुआत यूपीए चैयरपर्सन सोनिया गांधी ने पलवल जिले के कोंडल गांव से वर्ष 2005 में शुरुआत की. अगर इस योजना से मेवात को पानी नहीं मिलता तो लोग यहां से अब तक पलायन करने को मजबूर हो जाते. रोजाना इस परियोजना का 3 करोड़ 20 हजार लीटर शुद्ध जल मेवात जिले के लोगों को मिल रहा है. साल दर साल बरसात कम होने से करीब 35 टयूबवैल पुन्हाना इलाके में जवाब दे गए. बरसात अच्छी हो या नहरों में और तालाबों में पानी लबालब भरा हो तो कुछ हालात सुधर सकते हैं. नहरी इलाके के आसपास के कुछ गांवों में आज भी पीने योग्य पानी बचा है. अगर अच्छी बरसात नहीं हुई और यमुना लबालब नहीं भरी तो आने वाले समय में यह परियोजना भी फैल साबित हो सकती है. सबसे ज्यादा खराब हालत नगीना खंड के 59 गांवों की है, जहां का पानी इतना खारा और गहरा हो चला कि इंसान तो क्या जानवर ही नहीं बल्कि पक्षी तक भी पीने के बाद ज्यादा दिन जीवित नहीं रह सकते. वहीं मेवात को अगर हरियाणा का लातूर कहा जाए तो इसमें गलत कुछ नहीं होगा.