परम्परागत लकड़ी के बर्तन बनाने की कला आज भी है जीवित

खबरें अभी तक। नया  नौ  दिन पुराना  सौ दिन यह कहावत आज भी सही बैठती है। सिरमौर जिला का खदाल  निवासी सूरत सिंह पर, जो आज भी आधुनिकता के दौर  में परम्परागत व्यवसाय और कला  को संजोय हुए हैं। पहाड़ी इलाकों में दही से लस्सी बनाने के लिए बड़े बड़े लकड़ी के बर्तन बनाये जाते हैं। जिसे हांडा कहा  जाता है। यह एक विशेष प्रकार की लकड़ी जिसे संदन कहते हैं जिससे ये बनाये जाते हैं और बड़े डंडे यानि मधानी से लस्सी बनाई जाती है। ये बड़े हांडे  बनाने में कला और निपुणता की जरूरत होती है। इनमें बनी लस्सी को स्वास्थय  वर्धक माना  जाता है। आज भी दूर दूर से लोग इसे खरीदने आते हैं।

सूरत सिंह ने बताया कि पहले ये हांडे  बहुत बिकते थे। मगर अब मशीन आने से कम हो गए हैं। लेकिन अभी भी बहुत से लोग इन्हे खरीदने आते हैं। हालाँकि यह काफी जटिल कार्य है लेकिन फिर भी वो इस परम्परागत कला से जुड़े हुए हैं। इसमें बनी दही और लस्सी विशेष गुणकारी मानी  जाती है।

उल्लेखनीय है कि आधुनिकता के इस दौर  में सिरमौर के लोग आज भी परम्पराओं को जीवित रखे हुए हैं। सूरत सिंह के हांडे  पुरे इलाके में गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।