मिसालः मंदिरों की सजावट और पूजा-पाठ के लिए फूल उगाते और माला बनाते हैं मुस्लिम परिवार

खबरें अभी तक। एक तरफ जहां सारे देश में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं सामने आ रही हैं, ऐसे में झारखण्ड के धनबाद जिले में एक ऐसी कहानी सामने आई है. जो लोगों के मन में प्रेम, शांति और मोहब्बत के बीज बोने का काम कर रही है.

40 मुस्लिम परिवार चार दशकों से कर रहा है काम-
जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर बलियापुर प्रखंड के विखराजपुर गांव में लगभग 40 मुस्लिम परिवार चार दशकों से जिले में और आसपास स्थित हिन्दू मंदिरों के लिए फूल उगा रहे हैं और माला बना बना रहे हैं.

5 रुपये में बेचते हैं एक मालः किसान-
एक किसान शेख शमसुद्दीन ने बताया कि अपनी आजीविका के लिए किसान फूलों की खेती पर निर्भर हैं. उन्होंने बताया, ‘हम झरिया शहर में एक व्यापारी को फूल और माला भेजते हैं और फिर वह जरूरत के हिसाब से विभिन्न मंदिरों के एजेंटों को इन्हें बेच देते हैं.’ अपनी कहानी आगे बताते हुए उन्होंने कहा कि वह एक माला को सिर्फ 5 रुपये में बेचते हैं.

खास मौके पर मुफ्त में सजाए जाते हैं मंदिर-
उन्होंने कहा कि रामनवमी और दुर्गा पूजा के जैसे अवसरों पर किसान अक्सर मुफ्त में मंदिर सजाने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर उठाते हैं. झरिया में एक स्थानीय काली मंदिर के पुजारी दयाशंकर दुबे ने बताया कि विखराजपुर में किसान त्यौहारों के दौरान कभी भी फूल भेजने से नहीं चूकते हैं. उन्होंने बताया, ‘मंदिर समिति उनके योगदान की, अलग- अलग तरीकों से भरपाई करने की कोशिश करती है.’

पेशा बदलने के लिए दिया जाता है दवाब-
मंदिरों में फूल भेजने के काम में सांप्रदायिक तनाव कभी भी आड़े नहीं आया. एक अन्य किसान मोहम्मद सैफी ने बताया, ‘यह हमारी आजीविका का सवाल है…कोई भी सांप्रदायिक तनाव हमें पिछले 40 सालों से फूल उगाने और बेचने से नहीं रोक पाया है. ‘ ऐसे भी मौके आए जब किसानों पर पेशा बदलने के लिए गहरा दबाव रहा. एक ग्रामीण अनवर अली ने बताया, ‘दबाव तो कई ओर से रहा कि फूल उगाने के बजाय सब्जियां और नगदी फसलों की ओर ध्यान दें तो आर्थिक लाभ अधिक होगा. लेकिन गांव वाले फूलों के कारोबार से भावनात्मक रूप से जुड़े हैं.’