भाजपा के खिलाफ कितनी सफल हो पाएगी विपक्ष में एकजुटता की मुहिम

तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा-विरोधी मोर्चा तैयार करने के मकसद से इस हफ्ते चार दिन तक दिल्ली में डेरा डाले रहीं। अगले हफ्ते तेलुगु देसम पार्टी (तेदेपा) के सुप्रीमो और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी इसी मुहिम पर दिल्ली पहुंचने वाले हैं। यानी आगामी चुनावी महासमर से एक साल पूर्व एक ऐसी संभावना आकार लेने लगी है, जो भाजपा के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं। विपक्षी दल इस एकसूत्री सोच के साथ एकजुट होने लगे हैं कि आगामी चुनाव में किसी भी सूरत में मोदी के विजयरथ को रोकना है। मोदी बनाम अन्य की यह संभावना 2019 की चुनावी जंग को दिलचस्प बना देगी। भले ही केमिस्ट्री (या कहें कि मतदाताओं से जुड़ाव) मोदी की सबसे बड़ी ताकत या संपदा हो, लेकिन यदि विपक्ष की ज्यादातर लोकसभा सीटों पर वन-टु-वन मुकाबले की स्थिति निर्मित करने की योजना परवान चढ़ती है तो गणित (आंकड़े) उसके पक्ष में हो सकता है। विपक्ष की रणनीति धीरे-धीरे सामने आने लगी है।

तीसरे मोर्चे या संघीय मोर्चे का विचार

कुछ दिन पहले टीआरएस के मुखिया व तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और उसके बाद ममता बनर्जी ने तीसरे मोर्चे या संघीय मोर्चे का विचार उछाला था, जिसे अब त्याग दिया गया है। एनसीपी के नेता शरद पवार के उकसावे पर अब ममता ने एक ऐसे संयुक्त विपक्षी मोर्चे का विचार पेश किया है, जिसमें कांग्रेस भी शामिल हो।गौरतलब है कि ममता इस हफ्ते दिल्ली आकर सबसे पहले शरद पवार से ही मिलने पहुंची थीं। बताते हैं कि इस मुलाकात के दौरान पवार ने ममता को समझाया कि कांग्रेस को दूर रखना ठीक नहीं होगा। उन्होंने ममता के समक्ष यह स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी के पास महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने के सिवा कोई चारा नहीं है। यह एक प्रांतीय मजबूरी है और अन्य राज्यों में कुछ और क्षेत्रीय दलों के समक्ष भी ऐसी ही विवशता है।

बदले सुर

ममता ने भी उनके इस तर्क पर गौर किया। लिहाजा दिल्ली से रवाना होते-होते उनके सुर बदल चुके थे। अब वे भाजपा के खिलाफ संघीय मोर्चे के बजाय एक ऐसा व्यापक मोर्चा तैयार करना चाहती हैं, जिसमें कांग्रेस की भी भूमिका हो। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक विपक्षी नेताओं के बीच परदे के पीछे चल रही बातचीत में यह संदेह गहरा रहा है कि टीआरएस के नेता के. चंद्रशेखर राव दरअसल विपक्षी कैंप में भाजपा के मोहरे हैं। उन्हें लगता है कि चंद्रशेखर राव ने संघीय मोर्चे का विचार दरअसल कांग्रेस को दूर रखने के लिए ही उछाला, ताकि 2019 के चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति निर्मित हो सके। यह भाजपा के लिए भी मुफीद होता, जिसे निश्चित तौर पर वन-टु-वन लड़ाई के बजाय बहुध्रळ्वीय संघर्ष से ज्यादा फायदा है।