करोड़ो रुपए के टैक्नोमैक घोटाले का खुलासा

खबरें अभी तक। पांवटा ब्लॉक की इंडियन टैक्नोमैक कंपनी के खिलाफ जैसे-जैसे जांच का शिकंजा कसता जा रहा है वैसे-वैसे नए मुद्दों में इजाफा हो रहा है। अब मामले की जांच सी.आई.डी. के हवाले है। माजरा पुलिस में हुई एफ.आई.आर. से संबंधित दस्तावेज भी पुलिस से लेकर सी.आई.डी. को दिए गए हैं। अब यह तय है कि पुलिस इस मामले में कुछ नहीं करेगी। उधर, आबकारी एवं कराधान विभाग के अनुसार कंपनी की 40 अन्य फर्जी कंपनियों में से सी.आई.डी. के शिकंजे में आए निदेशक आरोपी विनय शर्मा को 10 कंपनियों का निदेशक बनाया गया था जबकि शुरूआती जांच में उसने अपने आप को कंपनी का एक छोटा-सा मुलाजिम बताया था।

सी.आई.डी. को लेनी होगी सी.बी.आई. व ई.डी. की मदद
अन्य 30 कंपनियों का निदेशक राकेश शर्मा था जोकि अभी सी.आई.डी. के हत्थे नहीं चढ़ा है। बताया जा रहा है कि वह विदेश में है। सी.आई.डी. को उसे यहां लाने के लिए सी.बी.आई. व ई.डी. जैसी एजैंसियों की मदद लेनी होगी। हजारों करोड़ रुपए के घोटाले में सी.आई.डी. के शिकंजे में आया आरोपी निदेशक अपने आप को पाक साफ करार नहीं दे सकता। उधर, आबकारी एवं कराधान विभाग ने सी.बी.आई. व ई.डी. से मामले की जांच करवाने के लिए संबंधित कागजातों का चिट्ठा शिमला भेज दिया है। अब सी.बी.आई. व ई.डी. से जांच की गेंद सरकार के पाले में है।

खुलासा करने वाले अधिकारी को जाना पड़ा स्टडी लीव पर
वर्ष 2014 में 6,000 करोड़ रुपए के टैक्नोमैक घोटाले का खुलासा हुआ। सबसे पहले आबकारी एवं कराधान विभाग के निडर व ईमानदार अफसर जी.डी. ठाकुर को सरकार ने विभाग के इक्नोमिक विंग की कमान सौंपी थी। उन्हों ने जब 2100 करोड़ रुपए के टैक्स चोरी का खुलासा किया तो उस वक्त कांग्रेस सरकार के आला अफसरों के पांव तले जमीन खिसकती नजर आई। जी.डी. ठाकुर पर दबाव बढऩे लगा लेकिन इस निडर अफसर ने हार नहीं मानी। समझौता करने की बजाय स्टडी लीव लेकर डेढ़ साल के लिए चले गए। बस इसके बाद फिर हालात बदले। विभाग के अनुसार डेढ़ साल के बीच फिर धांधलियां हुईं। फैक्टरी परिसर से लाखों रुपए का सामान चोरी हुआ जिसे निदेशकों ने बेच डाला।

धारा-118 का भी हुआ उल्लंघन
जमीनों की खरीद-फरोख्त के लिए खासतौर से औद्योगिक इकाइयों की बात करें तो सरकार ने धारा-118 का शिकंजा कभी ढीला नहीं किया लेकिन टैक्नोमैक मामले में शुरूआती जांच से पता चलता है कि धारा-118 का भी खुला उल्लंघन हुआ है। बयान हलफिया के आधार पर बेनामी संपत्तियों की खरीद-फरोख्त हुई है। धारा-118 के तहत हिमाचल के ही लोगों को कितनी परेशानी जमीन खरीदने के लिए उठानी पड़ती है लेकिन यहां बेनामी संपत्तियां कंपनी के निदेशक टैक्स का पैसा निकालकर खरीदते रहे और सरकार को पता नहीं चला। आबकारी विभाग के अनुसार फैक्टरी परिसर के आसपास करोड़ों रुपए की बेनामी संपत्ति खरीदी गई। यानी लाखों रुपए की भूमि करोड़ों में।