दावे चाहे जितने हों, फिर भी जारी है महिलाओं की अग्निपरीक्षा

देश के कुछ रेलवे स्टेशनों का जिम्मा अब पूरी तरह महिला कर्मचारियों को सौंपा गया है, जहां अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक सभी कर्मचारी महिलाएं हैं। यह भी कहा जा रहा है कि देश भर में ऐसे रेलवे स्टेशनों की संख्या बढ़ाई जाएगी जहां देखरेख से लेकर सभी अन्य कामों की कमान महिलाओं के हाथों में होगी।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के बहाने जब भारतीय रेलवे लैंगिक समानता के प्रति अपना सरोकार उजागर करना चाह रहा था, तब इस खबर को प्रचार माध्यमों ने काफी वरीयता दी थी। मिसाल के तौर पर महाराष्ट्र का नई अमरावती स्टेशन, मुंबई के सबर्बन सेक्शन का माटुंगा रोड स्टेशन, नागपुर के पास का अजनी स्टेशन, तिरुपति के निकट का चंद्रगिरी स्टेशन और जयपुर के पास का गांधीनगर स्टेशन आदि उन स्टेशनों की सूची में शामिल हुए हैं, जहां स्टेशन मास्टर्स से क्लीनर्स तक, गार्ड से लेकर सिग्नलिंग कर्मियों तक सभी कर्मचारी महिला हैं। लगभग 91 हजार महिलाओं को नियुक्त करने वाले भारतीय रेल के प्रबंधन की तरफ से अपनी 68 डिवीजन्स को निर्देश दिया गया है कि वे कम से कम एक स्टेशन चिन्हित करें, जहां सभी कर्मचारी महिला हों। इतना ही नहीं, बल्कि कुछ टेनों में सभी ट्रेवलिंग टिकट एक्जामिनर्स भी अर्थात टीटीई भी महिलाएं ही होंगी। प्रायोगिक तौर पर झारखंड की बरकीछापी से तोरी पैसेंजर, कोयना एक्सप्रेस और मुंबई से पुणे के बीच चलने वाली डेक्कन क्वीन में यह सिलसिला शुरू हो गया है।

वैसे हर नौकरी में अपनी क्षमता साबित करनी पड़ती है और वह जरूरी भी है, लेकिन यह लिंग के आधार पर हो तो वह लिंगभेद बढ़ानेवाला ही होगा, बजाय इसके कि रेलवे अपनी भर्तियों में अधिकाधिक अवसर महिलाओं को दे और देश के हर स्टेशन पर उनकी उपस्थिति बढ़े और इसी के साथ सभी स्टेशनों पर महिलाओं के अनुकूल यानी महिला हितैषी वातावरण का निर्माण हो सके, लेकिन इस तरह से वह अपनी संकीर्ण सोच का ही परिचय दे रहा है। अपने सहकर्मी के रूप में स्त्री को स्वीकारना एक जरूरी मुद्दा है। इससे दोनों का प्रशिक्षण होता है और दोनों सीखते हैं।