राजनीतिक दलों की माई-बाप होती है जनता, मौका मिलते ही लगा देती है होश ठिकाने

आम जनता केसमक्ष साफ-सुथरी छवि व ईमानदारी संबंधी लंबी चौड़ी बातें करने वाले राजनीतिक दलों के लिए अब अपने आपको बदलने का वक्त आ गया है, क्योंकि आम जनता भी अब बदलने लगी है और अपने जनप्रतिनिधियों पर पैनी निगाह रखने लगी है। ऐसी आवाजें जोर पकड़ने लगी हैं कि पहले खुद को पाक-साफ करो तब हमारे सामने आओ। विभिन्न एजेंसियों की रिपोर्ट व मीडिया ने काफी हद तक उन्हें जागरूक कर दिया है और यही कारण है कि जिस प्रकार राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए नए नए हथकंडे आजमा रहे हैं उसी प्रकार अब जनता भी उनको कदम दर कदम परख रही है। चाहे कोई कितना भी बड़ा नेता क्यों न हो, मौका हाथ आते ही उसका सूपड़ा साफ करने में वह जरा भी देर नहीं कर रही।

केंद्र व राज्यों के पिछले डेढ़ दशक के चुनाव परिणाम बताते हैं कि बड़े-बड़े नाम वाले रसूखदार उम्मीदवारों, यहां तक की मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों तक को जनता ने नहीं बख्शा है। राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के चुनाव आयोग में जमा हलफनामों पर आधारित एडीआर की हालिया रिपोर्ट बताती है कि बड़ी-बड़ी बातों व दावों के बावजूद लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दल अब भी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह सब तब है जब एक जनहित याचिका पर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को इस संबंध में त्वरित ठोस कार्रवाई करने का निर्देश दे रखा है। हालांकि सरकार ने इस बाबत मामलों के त्वरित निपटारे के लिए कुछ विशेष अदालतें गठित कर दी हैं, पर ये नाकाफी हैं और मूल समस्या अब भी बरकरार है।