चारा घोटाला में लालू मुख्य साजिशकर्ता, कोर्ट की आंखों में धूल झोंककर राजनीतिक पहुंच का उठाते रहे फायदा

चारा घोटाले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव केंद्रीय भूमिका में थे। लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट का यह निष्कर्ष आया है और संभवत: यही कारण रहा है कि उन्हें अब तक की सर्वाधिक कठोर सजा दी गई। कोर्ट ने अपने निष्कर्ष में पाया है कि लालू ने न्यायपालिका की आंखों में धूल झोंककर राजनीतिक पहुंच का फायदा उठाया और मामले की सुनवाई लगभग 20 वर्षों तक बाधित रही। रामराज राम (पशुपालन विभाग के तत्कालीन निदेशक) की नियुक्ति को जब हाई कोर्ट ने अवैध करार दे दिया, तब भी इसका अनुपालन नहीं हुआ और इस बीच सुप्रीम कोर्ट से स्टे लेने में भी आरोपी सफल रहे।

मामला छह वर्ष (1990-1996) तक लटका रहा और इसी दौरान तमाम घोटाले हुए। लालू ने मुख्यमंत्री का पद पत्नी राबड़ी देवी को दे दिया, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया में लगातार बाधा बनते रहे। उन्हें इस आधार पर बेल मिली थी कि वह बिहार की सीमा से बाहर कोर्ट की अनुमति से ही जाएंगे, लेकिन सांसद बनने के बाद वह रेल मंत्री बनने में सफल हुए और लगातार कोर्ट के निर्देश की अवहेलना की।

कोर्ट के फैसले में लगभग पांच पन्ने लालू पर लगे आरोपों के निष्कर्ष हैं। इसमें कोर्ट ने स्पष्ट पाया है कि मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री के रूप में लालू को पूरे घोटाले की जानकारी थी, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की बल्कि झूठे आश्वासन देते रहे। मार्च, 1991 में उन्होंने विधान परिषद में एक झूठा आश्वासन दिया कि लोक लेखा समिति की रिपोर्ट के बाद मामले की जांच सीबीआइ से कराई जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मार्च, 1990 से जुलाई, 1997 तक लालू मुख्यमंत्री और वित्तमंत्री भी रहे। इस दौरान सीएजी ने अधिक खर्च की लगातार रिपोर्ट दी, जिसपर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

रांची से महालेखाकार ने स्पष्ट जानकारी दी कि पशुओं को कार, स्कूटर और मोटरसाइकिल पर लादकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाया गया, लेकिन इस सूचना के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पूर्व इस मामले में कार्रवाई करने से लालू बचते रहे। एक गरीब परिवार में जन्मे लालू ने राजनीति में आने के बाद भ्रष्टाचार की नदी बहा दी, जिनमें चारा घोटाला भी शामिल है।

कर्मियों को वेतन के लाले, घोटालेबाजों के लिए खुला था खजाना
वर्ष 1990 में मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू यादव ने एक ओर जहां पशुपालन विभाग के कर्मियों की सुध नहीं ली वहीं विभाग से बड़े पैमाने पर अवैध निकासी की जानकारी होने के बावजूद फिजूलखर्ची को नहीं रोका और घोटालेबाजों के लिए खजाना खुला रहा। सीएजी रिपोर्ट के अनुसार जहां 1988-89 में 17 प्रतिशत अधिक राशि खर्च हुई थी वहीं 1989-90 में 20 फीसद, 1990-91 में 53 फीसद, 1991-92 में 120 फीसद, 1992-93 में 131 फीसद, 1993-94 में 169 फीसद और 1994-95 में 229 फीसद बजट से अधिक राशि खर्च हुई और वित्त मंत्री के रूप में लालू प्रसाद यादव को नियमित जानकारी मिलती रही।