राज्यसभा में बढ़ता भाजपा का कद, इस गणित से छू सकती है बहुमत का आंकड़ा

राज्यसभा में अपनी सहयोगियों के साथ भाजपा का बढ़ता कद पार्टी के लिए फायदेमंद साबित होगा। अब ऊपरी सदन में मोदी सरकार के संख्यात्मक कमी के कारण होने वाले नुकसान को कम करने में मदद मिलेगी। माना जा रहा है कुछ क्षेत्रीय पार्टियों की मदद से भाजपा बहुमत के आंकड़े को भी छू सकती है। निर्दलीय और नामांकित सांसदों के बीच का समर्थन सरकार को अपने बिलों को पारित कराने में मदद करेगा।

बता दें कि भाजपा के पास लोकसभा में मौजूदा वक्त में बहुमत है। 540 सीटों वाली लोकसभा में 315 सीटें एनडीए के पास हैं। शुक्रवार के परिणाम आने के बाद अब मौजूदा वक्त में राज्यसभा में भाजपा की स्थिति बहुमत के आंकड़े से महज थोड़ा दूर है। एनडीए 123 के बहुमत के आंकड़े को पार कर सकती है अगर उसे एआइएडीएमके, टीआरएस, वाइएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल (बीजेडी) जैसी क्षेत्रीय पार्टियां का समर्थन मिल जाए।

हालांकि, 2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजेडी) को साथ लेकर चलने के लिए तैयार है, क्योंकि पार्टी ने पिछले बिलों के लिए मतदान किया था। आंकड़े यह भी दिखाते हैं कि अभी भी यूपीए, वाम और तृणमूल कांग्रेस सहित 115 सदस्य सरकार के लिए रोड़ा बने हुए है, जो किसी भी सूरत में सरकार के विधेयक का समर्थन करने को तैयार नहीं हैं, वहीं विपक्ष सरकार के खिलाफ रैलियां भी कर रहा है।

सरकार के पास अगले महीने के बाद में सेवानिवृत्त होने वाले तीन सांसदों के स्थान पर नए सदस्यों को नामांकित करके अपनी ताकत को सुधारने का विकल्प होगा। वर्तमान में तीन नामांकित सदस्य सरकार को समर्थन दे सकते हैं और चार स्वतंत्र सांसदों के पास राजकोषीय बैंच के साथ जाने की संभावना है। सरकार अपनी पूर्व सहयोगी इंडियन नेशनल लोकदल के साथ दोबारा संबंध सुधारने का प्रयास कर सकती है। राज्यसभा में इंडियन नेशनल लोकदल का केवल एक सदस्य है।

हालांकि, यह भाजपा के लिए एक अच्छा संकेत है, जो कि 2014 में पद ग्रहण किए जाने के बाद से ऊपरी सदन में संघर्ष कर रही है। उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा उपचुनावों में सपा के जीतने के बाद अब पार्टी को अपने सहयोगियों का रुख देखने की जरूरत है। तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने पहले ही आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर एनडीए से अपना रिश्ता तोड़ दिया है। वहीं, शिवसेना भी कई बार खुद को एनडीए से अलग होने की धमकी दी चुकी है। अकाली दल और भाजपा के रिश्ते में भी बाधा चल रही है, लेकिन उसके विपक्ष को वोट करने की संभावना बिल्कुल नहीं है। वहीं, जनता दल (यू) के साथ भी ऐसा ही है। ऐसे में भाजपा को राज्यसभा में अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए सहयोगियों से रिश्तों में मजबूती लाने की जरूरत है।