भारत में पुलिस मुठभेड़ों के ‘जनक’ के रूप में पहचाने जाने वाले पूर्व आईपीएस सीमा सुरक्षा बल के रिटायर्ड महानिदेशक और दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर अजय राज शर्मा के मुताबिक आम इंसान वाला दिल ही पुलिसकर्मी के सीने में भी धड़कता है. अगर यह सच न होता तो 1970 के आसपास चंबल घाटी की खूंखार महिला डकैत ‘गुल्लो’ की हमारे एक दारोगा के सीने में उतरी गोली का खून और घाव अजय राज शर्मा को शायद कभी रुला नहीं पाते.
वह कहते हैं, ‘वक्त जरूर बीत गया है. मैं पुलिस की नौकरी से रिटायर हो चुका हूं. मगर उस बहादुर दारोगा के सीने पर चंबल की महिला डाकू गुल्लो की राइफल से निकली गोली का वो ज़ख्म मेरी आंखों में आज भी जस-का-तस मौजूद है. उस जाबांज दारोगा का नाम था माहबीर सिंह.’
अजय राय बताते हैं, ‘उन दिनों नया-नया आईपीएस बना था. सोचता रहता था कि, कुछ ऐसा कर गुजरूं, जिससे काडर सूबा (उत्तर प्रदेश पुलिस) ही नहीं वरन् देश पहचाने. इस ख्वाहिश को पालते-पोसते चार साल का लंबा वक्त गुजर गया. 1966 में यूपी काडर का आईपीएस बना और 1970 में हसरत पूरी करने का मौका हाथ लग पाया. उस निहत्थे मगर जांबाज दारोगा की क्षत-विक्षत लाश देखकर भूल गया कि, मैं एक आईपीएस अफसर हूं. मौके पर मौजूद भीड़ से बेपरवाह होकर, मैं एक बालक की मानिंद बिलख पड़ा. मन में ठान लिया था… दारोगा की इस शहादत स्थल पर गिरे अपने एक-एक आंसू का बदला इससे भी भयंकर लूंगा.’