भगत सिंह की फांसी ही नहीं, इसलिए याद किया जाना चाहिए 23 मार्च

23 मार्च एक ऐसा दिन है, जो क्रांति के नाम है। 23 मार्च को सिर्फ इसलिए याद नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इस दिन अंग्रेजों ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी थी। बल्कि इसे इस रूप में याद किया जाना चाहिए कि आजादी के दीवाने तीन मस्तानों ने खुशी-खुशी फांसी के फंदे को चूमा था। इस दिन को इस रूप में याद किया जाना चाहिए कि इन तीनों ने भारत मां को गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। इस दिन को अंग्रेजों के उस डर के रूप में भी याद किया जाना चाहिए, जिसके चलते इन तीनों को 11 घंटे पहले ही फांसी दे दी गई थी। आज इन क्रांतिवीरों के शहीदी दिवस पर जानेंगे उस दिन क्या कुछ हुआ था। पहले भगत सिंह के बारे में चंद पंक्तियां…

ऐसे थे भगत सिंह
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था। यह कोई सामान्य दिन नहीं था, बल्कि इसे भारतीय इतिहास में गौरवमयी दिन के रूप में जाना जाता है। अविभाजित भारत की जमीं पर एक ऐसे शख्स का जन्म हुआ जो शायद इतिहास लिखने के लिए ही पैदा हुआ था। जिला लायलपुर (अब पाकिस्तान में) के गांव बावली में क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था। भगत सिंह को जब ये समझ में आने लगा कि उनकी आजादी घर की चारदीवारी तक ही सीमित है तो उन्हें दुख हुआ। वो बार-बार कहा करते थे कि अंग्रजों से आजादी पाने के लिए हमें याचना की जगह रण करना होगा।

भगत सिंह की सोच उस समय पूरी तरह बदल गई, जिस समय जलियांवाला बाग कांड (13 अप्रैल 1919) हुआ था। बताया जाता है कि अंग्रेजों द्वारा किए गए कत्लेआम से वो इस हद तक व्यथित हो गए कि पीड़ितों का दर्द बांटने के लिए 12 मील पैदल चलकर जलियांवाला पहुंचे। भगत सिंह के बगावती सुरों से अंग्रेजी सरकार में घबराहट थी। अंग्रेजी सरकार भगत सिंह से छुटकारा पाने की जुगत में जुट गई। आखिर अंग्रेजों को सांडर्स हत्याकांड में वो मौका मिल गया। भगत सिंह और उनके साथियों पर मुकदमा चलाकर उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।