खबरें अभी तक। टाटा ग्रुप के फाउंडर जमशेदजी टाटा थे. 3 मार्च 1839 को गुजरात के नवसारी में वे पैदा हुए थे. कहा जाता है कि जमशेदजी ही वह शख्स थे, जिन्होंने भारत को बिजनेस करना सिखाया. यूं तो जमशेदजी के बारे में बहुत कहा जाता है, लेकिन उनके और उनके परिवार से जुड़े कुछ ऐसे सीक्रेट हैं, जिनके बारे में शायद ही आप जानते हों. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वह ही इकलौते भारतीय हैं जिन्होंने देश में पहली बार कार खरीदी थी. अगली स्लाइड में जानिए कैसे शुरू हुआ टाटा ग्रुप-
आपको यह जानकार बहुत हैेरत होगी कि टाटा फैमिली शुरुआत में अफीम का कारोबार किया करती थी. ये जमशेदजी ही थे जिन्होंने अफ्रीम के कारोबार से निकालकर टाटा फैमिली को एक आइडियल और वैल्युएबल बिजनेस एम्पायर में तब्दील कर दिया. आगे चलकर टाटा फैमिली उस हैसियत में बड़ी हो गई, जहां वह सरकार को भी लोन दे सकती थी. जानें कैसे उन्होंने मुंबई शहर को बसाने में बड़ी भूमिका निभाई.
टाटा फैमिली मूल रूप से गुजरात के नौसारी से आती है. 18वीं शताब्दी के शुरुआती सालों में जमशेदजी के पिता नसरवानजी टाटा वहीं अपना कारोबार किया करते थे. जब अंग्रेजों ने मुंबई शहर को बसाना शुरू किया तो मुनाफा कमाने की फिराक में नसरवानजी नौसारी से मुंबई आ गए. अंग्रेजों को कारोबारियों की जरूरत थी और नसरवानजी को कारोबार की. इसके चलते नसरवानजी ने मुंबई में ठहरने का मन बना लिया. उधर जमेशदजी नौसारी में ही अपनी शुरुआती पढ़ाई कर रहे थे.
नसरवानजी एक मंझे हुए कारोबारी थे, मुंबई आने से पहले वह गुजरात में अपना ट्रेडिंग का कारोबार फैला चुके थे. यह 1850 का दौर था. पूरी दुनिया में अपना एम्पायर खड़ा करने के लिए पश्चिमी देश भयानक मार काट कर रहे थे. युद्ध में घायल सैनिकों को दर्द से निजात दिलाने के लिए सबसे बेहतर ऑप्शन अफीम हुआ करती थी.
इस बीच जमशेदजी की उम्र बढ़ रही थी, नवसारी में शुरुआती पढ़ाई के बाद 13 साल की उम्र में वह मुंबई आ गए. 17 साल की उम्र में उन्होंने मुंबई के ‘एलफिंसटन कॉलेज’ में दाखिला लिया. यहां उन्होंने टॉपर के तौर पर डिग्री पूरी की. इसके बाद वह पिता के व्यवसाय में पूरी तरह लग गए.
जमशेदजी टाटा ने इसके बाद शुरुआत में पिता के कारोबार में हाथ बढ़ाया और 29 साल की उम्र में अपनी कंपनी शुरू की. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जमशेदजी को शुरुआती कारोबार में असफलता मिली. यहां तक की उस दौर में सबसे फायदे का बिजनेस माने जाने वाले अफीम के कारोबार में भी. इन्होंने इस दौरान काफी देशों का दौरा भी किया. ब्रिटेन में उन्हें कॉटन मिल की क्षमता का अंदाजा हुआ. भारत वापस आने के बाद जमशेदजी ने एक तेल मिल खरीदी और उसे कॉटन मिल में तब्दील कर दिया.जब वह मिल चल निकली तो जमशेदजी ने उसे भारी मुनाफे में बेच दिया.
जमशेदजी ने कॉटन के कारोबार की संभावनाओं को पहचान लिया था. इसलिए मिल से मिले पैसों से उन्होंने 1874 में नागपुर में एक कॉटन मिल खोली. उन्होंने इस मिल का नाम बाद में ‘इम्प्रेस्स मिल’ कर दिया. जमशेदजी का यह बिजनेस भी चल निकाला.